तहरीके अज़ादारी,तहरीके दीनफ़हमी के मुजाहिद थे मरहूम इरशाद हुसैन साहब

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    इरशाद हुसैन शाह मरहूम की रूह के इसाले सवाब के लिए अली कांग्रेस तंजीम की जानिब से एक मजलिसे तरहीम का इनक़ाद मस्जिदे ज़हरा, हाता मिर्जा अली ख़ाँ में किया गया। मजलिस को मौलाना इस्तफा रज़ा साहब ने ख़िताब किया। मजलिस में तनज़ीम अली कांग्रेस के अराकीन एडवोकेट हसीन अब्बास साहब, एडवोकेट मोहम्मद हुसैन रिज़वी साहब ,लवी नवाब साहब ,असग़र मेहंदी साहब ,जियो आग़ा नूर साहब, अली आग़ा ,अब्बास निगार साहब ,नदीम काज़मी साहब, अम्मार रिज़वी साहब, शाबू जैदी, क़ायम रिजवी, मरहूम के बेटे शब्बीर हुसैन शाह, शब्बीर हुसैन शाह व दीगर मोमिनीन ने शिरकत की।
    इरशाद हुसैन शाह मरहूम तनज़ीम अली कांग्रेस के नायब सदर रहे हैं, मरहूम की ख़ूबी यह थी कि अपनी कमाई से मस्जिदों और इमामबाड़ो की तामीर व रंग रोगन कराने में हमेशा पेश-पेश रहे, कितनी ही मस्जिदों में नमाज़ो का सिलसिला शुरू करवा कर उन वीरान मस्जिदो को आबाद किया, माहे रमज़ान में मुख़तलिफ़ मस्जिदों में रोज़ा इफ्तार एहतिमाम करवाना मरहूम का शौक था। सिर्फ यही नहीं बल्कि यौमे आशूरा को जब लखनऊ के नौजवान जुलूसों की बहाली के लिए गिरफ्तारी देते थे तो उन सब की अफ़राद की फ़ाक़ा शिकनी का इंतजाम इरशाद हुसैन शाह मरहूम ही किया करते थे, कई मर्तबा ऐसा हुआ है के पुलिस लाइन से छोड़ने के बजाय गिरफ्तार लोगों को जेल पहुंचा दिया गया, तो मरहूम जेल में भी गिरफ्तार अफ़राद के लिए खाना, नाश्ता वगैरह लेकर जाया करते थे। कोई भी हक़परस्त इंसान उनकी क़ौमी ख़िदमात को फ़रामोश नहीं कर सकता।
    अल्लाह की मसलहत कोई समझ नहीं सकता, वह जिस तरह चाहता है अपने बंदे को आज़माता है। शायद यह इरशाद साहब मरहूम के खुलूस की आज़माइश थी कि एक जानलेवा एक्सीडेंट के बाद अल्लाह ने उनको हयात बक्शी लेकिन वह पहले की तरह अपना कारोबार नहीं संभाल सकते थे इसके बावजूद भी उनके ख़ुलूस में किसी तरह की कोई कमी न थी। वह तहरीके अज़ादारी और तहरीके दीन फ़हमी के मुजाहिद थे। वह अली कांग्रेस के रूहे रवां जावेद मुर्तुज़ा ताबे सेराह मरहूम से बेइंतहा मोहब्बत करते थे, जावेद मुर्तुज़ा मरहूम के इंतकाल के बाद से कोई मौक़ा ऐसा नहीं हुआ हुआ जब इरशाद साहब मरहूम उनका तज़किरा करके अश्कबार ना हुए हों।

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