अमरीकी सरकार आने वाले दिनों में ईरान पर लगे हथियार से जुड़े प्रतिबंध को लेकर रूस और चीन के सामने दबाव बनाती हुई दिख रही है।
अमरीकी विदेश विभाग में ईरान मामलों के दूत ब्रायन हुक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए कहा है कि अगर रूस और चीन ने यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल में अमरीकी प्रस्ताव को ख़ारिज कराने की दिशा में क़दम उठाए तो संयुक्त राष्ट्र में ये दोनों देश अलग-थलग पड़ सकते हैं।
हुक ने ये बात औपचारिक रूप से अपना प्रस्ताव पेश करने से पहले कही है।
दरअसल, ईरान पर बीते 13 सालों से एक प्रतिबंध जारी है जिसके चलते वह हथियार नहीं ख़रीद सकता है।
लेकिन साल 2015 में हुए परमाणु समझौते के तहत आगामी अक्टूबर महीने में ये प्रतिबंध ख़त्म हो रहा है।
रूस और चीन ने संकेत दिए हैं कि वे इस प्रतिबंध को बनाए रखने के पक्ष में नहीं हैं।
वहीं, अमरीका का मानना है कि ये प्रतिबंध नहीं हटाए जाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब तक इस मुद्दे पर औपचारिक पेशकश का इंतज़ार कर रहा था।
हुक और यूएन में अमरीकी राजदूत केली क्राफ़्ट ने अपने तर्क तैयार किए हैं कि 15 सदस्यों वाली सिक्यॉरिटी काउंसिल को अमरीका के ड्राफ़्ट रिजॉल्युशन (प्रस्ताव) का समर्थन करना चाहिए।
हुक ने मंगलवार को एक इंटरव्यू में रॉयटर्स से कहा है, “हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय और रूस-चीन के बीच दूरियां बढ़ती देख रहे हैं। पिछले हफ़्ते रूस और चीन (इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी एजेंसी) में अलग-थलग पड़ गए थे। अगर उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो वे सिक्यॉरिटी काउंसिल में भी अलग थलग पड़ जाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने बीते शुक्रवार ईरान को आदेश दिया है कि वह संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों को अपने देश में उन दो जगहों पर जाने की इजाज़त दे जहां पर परमाणु हथियार से जुड़ी गतिविधियां चल रही हैं।
इसके साथ ही एजेंसी ने ईरान से निरीक्षकों को पूरा सहयोग देने की बात भी कही है।
ईरान के सहयोगी देश रूस और चीन ने इस क़दम का विरोध किया था लेकिन वे इस क़दम को रुकवा नहीं सके।
लेकिन सुरक्षा परिषद में दोनों ही देशों के पास वीटो पावर है।
सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के लिए 9 वोट समर्थन में चाहिए होते हैं। लेकिन ये भी ज़रूरी है कि अमरीका, चीन, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस में से कोई देश इसके ख़िलाफ़ वीटो न लगाए।