डूब गया चांद। अलविदा डॉक्टर कल्बे सादिक

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    موت العالِم موت العالَم
    سرکاردوجہاں ﷺ کا فرمان ہے کہ ایک عالم دین کی موت پورے عالم کی موت ہے۔
    انا للہ وانا الیہ راجعون
    इल्म के आसमान पर चमकता चांद डूब गया। मोहब्बत की शोआओं को बिखेरने वाला सूरज डूब गया। सादगी ने सफेद लिबास पहन लिया। चाशनी में डूबे हुए अल्फाज अपनी मिठास खो बैठे। क़ौम को इल्म की बुलंदियों पर देखने वाली निगाहें बंद हो गई।
    अफसोस सद अफसोस
    काफ़ी दिनों से बीमार चल रहे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष, वरिष्ठ धर्म गुरु, एकता के प्रतीक, शिक्षाविद, गरीबों और यतीमों के मसीहा डॉ. कल्बे सादिक (83) का आज मंगलवार रात करीब 10 बजे निधन हो गया। उन्होंने एरा मेडिकल कॉलेज में अंतिम सांस ली। कुछ दिन पहले उन्हें सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके बेटे डॉक्टर कल्बे सिब्तैन नूरी ने निधन की सूचना देते हुए कहा कि वे हम सबको यतीम करके चले गए।
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब सिर्फ पूरी क़ौम को ही नहीं बल्कि इल्म और एकता के लिए सकारात्मक सोच रखने वालों को भी यतीम कर गये।
    हिंदू-मुस्लिम एकता और शिया-सुन्नी एकता के प्रबल समर्थक रहे डॉक्टर कल्बे सादिक साहब की सादगी ऐसी थी कि विरोधी भी उनके कायल थे। वे वैज्ञानिक गणना के आधार पर काफी पहले ही ऐलान कर देते थे कि ईद का चांद कब दिखेगा। अब कौन इस परम्परा को संभालेगा?
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब ने अपनी पूरी जिंदगी शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति करने में बिता दी इसके अलावा क़ौम के उत्थान के लिए बहुत काम किया।
    युनिटी कॉलेज, एरा चिकित्सा विश्वविद्यालय, हिज़ा अस्पताल, अलीगढ़ में एम यू कालेज इसकी मिसाल हैं।
    इसके अलावा तौहीदुल मुस्लिमीन ट्रस्ट यानी टीएमटी जैसी संस्था खड़ी की जो गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में मदद करती है।
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब बहुत बड़े खतीब, वक्ता एवं विचारक भी थे। उनके विचारों को हर धर्म के लोग ध्यान से सुनते थे वह हर धर्म में आदरणीय थे। उनकी सबसे अच्छी और खास बात यह थी कि जब वह तकरीर करते थे या भाषण देते थे या मजलिस को खिताब करते थे तो उनका विषय शिक्षा यानी इल्म होता था वह चाहते थे कि लोग इसे हासिल करें क्योंकि इल्म की कमी से ही तमाम बुराइयां पैदा होती है।
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब हर धर्म का सम्मान करते थे उन्होंने एक तकरीर में कहा भी था कि जब से मैंने हिंदू धर्म ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया और गीता जी का अध्ययन किया तब से मुझे हिंदू धर्म बहुत अच्छा लगने लगा। वह यह भी कहा करते थे कि कुरान मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि इंसानों के लिए आया है जिसमें सभी लोग शामिल हैं। डॉ. कल्बे सादिक साहब को पूरी दुनिया आपसी भाईचारे और मोहब्बत का पैगाम देते शिया धर्म गुरु के रूप में जानती थी। उन्होंने हर बात में शिक्षा को भी बढ़ावा दिया। विदेशों में मजलिस पढ़ने जाते थे और मोहब्बत का पैगाम देते थे।
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब ने हमेशा एकता अखंडता भाईचारा प्रेम और मोहब्बत की बात की वह चाहते थे कि सब लोग मिल जुल कर रहे शिक्षा हासिल करें और देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाएं।
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब बिल्कुल स्पष्ट बात करना पसंद करते थे और वक्त के बहुत पाबंद इंसान थे शायद इसीलिए बीमार होने के बावजूद सीए और एनआरसी के खिलाफ घंटा घर पहुंचने वाले पहले और सबसे बुजुर्ग आलिमे दीन थे। यह कदम उनका मुल्क से मोहब्बत का सबूत था।
    डॉक्टर कल्बे सादिक साहब वक्त के बहुत पाबंद इंसान थे और अकसर वह कहते थे कि जो कौम वक्त की कद्र नहीं कर सकती वह कभी तरक्की भी नहीं कर सकती।
    अफसोस ।
    एक बेहतरीन इंसान, एक बेहतरीन खतीब, एक बेहतरीन शिक्षाविद, एक बेहतरीन रहनुमा, एक बेहतरीन सादा इंसान, मोहब्बत का एक मुजस्समा, एकता के प्रतीक, क़ौम के हमदर्द, गरीबों के मसीहा, देश के रत्न, इंसानियत के अलम्बरदार अब हमारे बीच नहीं रहे।
    अल्लाह दरजात बलंद फरमाये।

    जहांबानी से है दुश्वार-तर, कार-ए-जहांबीनी

    जिगर खूं हो तो चश्म-ए-दिल में होती है, नज़र पैदा

    हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है

    बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

    सैय्यद एम अली तक़वी
    लखनऊ
    syedtaqvi12@gmail.com

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