लखनऊ 9 जून 2020
इस्लाम का वजूद रसूलल्लाह के जरिये जब सामने आया तो सारी दुनिया ने इसकी सादगी भाईचारे की तारीफ की और आपस मे इंसानियत के साथ जिंदगी बसर करने की जो इसकी खुसूसियत थी उसे अपनाया।वैसे तो इस्लाम मे मौलनाओ का कोई वजूद नही है एक मेहनतकश मुसलमान भी तक़वा और परहेज़गारी से सबका रहनुमा हो सकता है।ये दीगर बात है कि कुरान और हदीस को समझ के आम आदमियों को इसकी सीख देने के लिए आलिम ए दीन आए लेकिन वो भी बेहद सादगी पसन्द थे।पर जब एक नज़र आज के मौलानाओ पर डाले तो उनके अमल इस्लाम की सीख के बिलकुल उलट है।वो नमाज़ भी दिखावे की पढ़ रहे रोज़े भी सियासी रख रहे सिर्फ इक़्तेदार और अपने जाती मफाद के लिए।इसका असर ये हुआ कि क़ौम जो इनको अपना रहबर समझती रही वो इनके मज़हबी जाल में फस के गाफिल हो गई और इस्लाम के बताए हुए रास्तो से भटक गई।
आज अखबार में मौलाना ख़ालिद राशिद साहब की नमाज़ पढ़ते फोटो देख कर काफी रंज हुआ ।पता नही कौन शख्स नमाज़ न पढ़ कर फज्र में इनकी फोटो खींच के मीडिया को दे रहा था या खुद इन्होंने ये सब करवाया। इस तरह की हरकतें देख कर ही गैर मुस्लिम क़ौम का मज़ाक उड़ाते है।
आज वक़्त आ गया है कि क़ौम इस तरह के सियासी मौलनाओ से अपने को दूर रखें और अपने और अपने बच्चों की तरबियत रसूलल्लाह के बताए तरीके़ से करे और उन्हें दीन दुनिया दोनों में एक मुक़ाम हासिल करने के लिये आगे बढ़ाए।
क़ौम क्या है क़ौम की इमामत क्या है
ये क्या जाने दो वक्त के इमाम।।