“दिनांक ५/१२/२०२५ को कब्रिस्तान तालकटोरा आराजी की कोर्ट आदेश से कमीशन हुआ,
जिसमें कब्रिस्तान आराजी पर लगभग ४०० मकान, ६६ दुकानें, लगभग स्कूल आदि पाए गए।
कथित मुतवल्ली शादाब आगा ने बताया कि उनके द्वारा इसी आराजी पर जितने नए निर्माण हो रहे हैं, वह सब मुसाफिर खाने बनाए जा रहे हैं।
अमीन द्वारा नक्शा नजरी बनाया गया तथा कब्रिस्तान आराजी पर जो पाया गया अपनी स्थल करवाई में लिखा गया है।
यह कमीशन शफी हैदर अमिल के द्वारा दाखिल मुकदमे में हुआ है। अमिल साहब शिया कॉलेज में प्रोफेसर हैं । वह इस करबला के सबसे बड़े हिस्सेदार हैं। उनका कहना है कि वक़्फ़ बोर्ड ने विधि विरुद्ध तरीके से उनकी करबला को अपने अभिलेखों में २०१२ में दर्ज कर लिया है, उसी के विरुद्ध उनका मुकदमा चल रहा है।उनका आरोप है कि बोर्ड ने इस कब्रिस्तान को दर्ज करने के बाद मुतवल्ली से मिलकर कब्रिस्तान पट तमाम अवैध निर्माण करा दिए हैं।
बोर्ड में दर्ज होने से पहले इस पर कोई निर्माण नहीं थी।
वह न्यायालय से सभी अवैध निर्माण हटाने के लिए भी कानूनी कार्रवाई करेंगे
ताकि कब्रिस्तान का जो स्वरूप बोर्ड और मुतवल्ली ने मिलकर बदल दिया है,
उसे पूर्ववत किया जा सके और क़ौम के लोगों को अपने मुर्दे दफ्न करने में दुश्वारी न हो।
सवाल यह उठता है कि क्या इतने सारे निर्माण की अनुमति वक़्फ़ बोर्ड ने दी ?
यदि नहीं, तो बोर्ड ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की ?
और इसी मुतवल्ली शादाब आगा को बार-बार मुतवल्ली क्यों बनाते रहे ?
इससे वक़्फ़ बोर्ड की स्थिति संदिग्ध प्रतीत होती है।
साथ ही जो मौलाना वक़्फ़ पर कहीं भी कोई निर्माण होते पाते हैं
तो तुरंत रोकने पहुंच जाते हैं,
वह भी इस आराजी पर हो रहे विधि विरुद्ध निर्माण पर कुछ नहीं किए। शफी हैदर आमिल का कहना है कि
इस प्रकरण में शासन प्रशासन को उच्च स्तरीय जांच करवाना चाहिए।