सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई 2025 को अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में अंतरिम जमानत दे दी। यह जमानत हरियाणा पुलिस द्वारा दर्ज दो FIRs के संबंध में दी गई, जिसमें उन पर देश की संप्रभुता और एकता को खतरे में डालने, सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने और महिलाओं की गरिमा का अपमान करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे।
कोर्ट ने जमानत देते हुए प्रोफेसर को इस मामले से संबंधित कोई भी ऑनलाइन पोस्ट या लेख प्रकाशित करने से रोक दिया और उनके पासपोर्ट को सोनीपत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपने का निर्देश दिया। साथ ही, हरियाणा पुलिस को एक तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया गया, जिसमें हरियाणा से बाहर के तीन IPS अधिकारियों, जिसमें एक महिला अधिकारी शामिल होगी, को शामिल करने को कहा गया। SIT को 22 मई 2025 तक गठित करने और जांच को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में कोई नई FIR दर्ज नहीं की जाएगी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दोनों FIRs को रद्द करने से इनकार कर दिया और जांच को जारी रखने की अनुमति दी। प्रोफेसर के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि पोस्ट में कोई सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाला तत्व नहीं था और यह एक देशभक्ति भरा बयान था। प्रोफेसर ने अपने बयान में कहा कि उनकी टिप्पणियों को गलत समझा गया और उनका उद्देश्य युद्ध-उन्मादी आख्यानों की आलोचना करना और नागरिकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर जोर देना था।
यह मामला ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रोफेसर की फेसबुक पोस्ट से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा दी गई प्रेस ब्रीफिंग को “ऑप्टिक्स” और “पाखंड” करार दिया था, साथ ही यह सुझाव दिया था कि दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को भीड़ द्वारा लिंचिंग और घरों के “मनमाने” विध्वंस के शिकार लोगों के लिए आवाज उठानी चाहिए।
इस गिरफ्तारी और जमानत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अकादमिक स्वतंत्रता पर बहस को जन्म दिया है, जिसमें कांग्रेस और अशोका विश्वविद्यालय के फैकल्टी एसोसिएशन सहित कई पक्षों ने प्रोफेसर के समर्थन में आवाज उठाई है।