लेखक एस.एन.लाल
फेसबुक और वाट्सअप पर शियों की मजलिसे और सुन्नियों के जो बयान सुनने को मिलते है, उन सबकी दिशा एक ही नज़र आती है…रसूल(स.व.अ.) और आलॅ-ए-रसलू बस…! यानि अगर ये नहीं तो इस्लाम नहीं, इस्लाम नही…तो हम मुसलमान नहीं…, बाक़ी सब भी, लेकिन इनके बाद। एस.एन.लाल
जहां मजलिसों में शिया ओलेमाओं ने कहां कि ‘‘सहाबा को बुरा न कहे…, या मरजा का फतवा आया कि सुन्नी हमारे भाई नही..हमारी जान हैं।’’ वही सुन्नी ओलेमा के बयान सुनने को मिले…‘‘जो हुसैन (अ.स.) का ग़म न मानये, वह सुन्नी नहीं…, या नये साल की मुबारकबाद देने को ग़ल्त बताया, कि इस्लाम के बचाने वाला शहीद हुआ हो, और हम मुबारकबाद दे..!’’ इसी तरह के लातआद बयान और मजलिसे सुनी..वह भी बुखारी शरीफ, मुस्लिम, तीरमीज़़ी व इमामों के हदीसों के सुबूत के साथ। एस.एन.लाल
इन सबका का असर किताबों से दूर रहने वाले और बस मोहल्ले की मस्जिद के इमाम पर यक़ीन करने वालों मुसलमान पर ज़्यादा हुआ और शिया-सुन्नी आपस में करीब आये। एस.एन.लाल
लेकिन एक तरफ जहां वसीम रिज़वी जैसे लोग मुसलमान को एक होने नही देना चाहते । ग़ैर इस्लामी, और सुन्नियों के खिलाफ बातें करतें है। वही कुछ मौलानाओं को भी मुसलमानों की यकजहती खली, और उन लोगों ने अज़ादारी के खिलाफ फतवे दे दिये…! इन फतवों से शियों पर तो असर नहीं पड़ता, लेकिन मुसलमानों का वह तबका़ जो मौलानाओं के बयान सुनकर ही मुसलमान है…, उस पर ज़रुर असर पड़ा और किताबों से दूर रहने वाला मुसलमान फिर नये-नये सवालों में घिर गया…! एस.एन.लाल
मेरी पढ़े-लिखे़ मुसलमानों से गुज़ारिश है, हर जगह खामोंशी ठीक नहीं…, जो सही है…वह बतायें…, सिर्फ मौलानाओं का ही फरीज़ा नहीं है.., आप अक़ीदे से नही, इस्लामी हिस्ट्री सामने रख दे वही काफी है, वह भी किताबों के हवालों के साथ। तो कम से कम मुसलमान बंटेगा तो नहीं…! एस.एन.लाल