मेरठ 30 अप्रैल 220 मेरठ को सांप्रदायिक दंगों के कारण कलंक मिला हुआ हैं वहीं दूसरी ओर यह क्रांतिकारी धरा हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी बेहतर तरीके से देना जानती है। यहां जब भी दोनों कौम के भाइयों को किसी के कांधे की जरूरत पड़ी दोनों ही मजहबों के लोगों ने खुले दिल से एक-दूसरे का साथ दिया और अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। ऐसी ही एक मिसाल लॉकडाउन और रमजान के बीच मंगलवार को देखने को मिली। जब पुजारी की मौत के बाद मुस्लिम समाज के लोग आगे आए और उन्होंने न सिर्फ अर्थी को कंधा दिया बल्कि अंतिम संस्कार की सभी रस्मों में पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। शव को कंधा देने में मुस्लिम समाज के लोग अपना रोजा खोला भी भूल गए और जब तक अर्थी को अग्नि नहीं मिल गई रोजा नहीं खोला।
मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर भी ध्यान दे मौलाना
कल माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 संवैधानिक वैधता बरक़रार...
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पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होना लगभग तय हो गया है,
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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए जोरो से मतदान जारी . अमेरिका के पूर्वी तट के समय के अनुसार, सुबह 7 बजे ईएसटी शुरू हुई...
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लोक गायिका शारदा सिन्हा का 72 वर्ष में निधन
बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का 4 नवंबर को देहांत हो गया। वह 72 वर्ष की थीं और दिल्ली के एम्स में...