लाशों के ढेर पर सिसकता हिंदुस्तान। खतरे में है नागरिकों की जान।।

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    हिंदुस्तान यानी भारत जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था आज वह मजबूर लाचार बेबस सिसकता कराहता नजर आ रहा है। विश्व गुरु चेला भी नहीं बन पाये। पूरी दुनिया हंस रही है।
    एक तरफ एक साल से ज़्यादा हो गये कोरोना के कहर ने हर किसी को खौफ के साए में जीने को मजबूर कर दिया है, उपर से हिंदुस्तान के कोने कोने से हर शहर हर गांव से ऐसी भवायह तस्वीरें सामने आईं कि हर किसी की रूह कांप उठी। इंसान इंसान से दूरी बनाने लगा लोग एक दूसरे से मिलने से परहेज करने लगे घरवालों ने आपस में एक दूसरे का साथ देना गवारा नहीं समझा। करुणा के इस दौर में इंसानियत का जनाजा उठ गया।
    असंख्य नदियों, पहाड़ों, पार्कों, ऐतिहासिक इमारतों के लिए मशहूर भारत जैसे देश में गंगा नदी में लाशों का ढेर लग गया। ये वीभत्स तस्वीरों ने सबको विचलित कर दिया। अगर कोई नहीं विचलित हुआ तो वह देश की सरकार है।
    सरकार सिर्फ अपने मन की बात तो कर लेती है लेकिन देश की जनता के मन में है कितने सवाल हैं इस पर ध्यान नहीं देती।
    शाइनिंग इंडिया
    डिजिटल इंडिया
    आत्मनिर्भर भारत
    विश्व गुरु
    अच्छे दिन आने वाले हैं
    सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास
    काला धन
    पन्द्रह लाख
    न गुंडाराज, न भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार
    हर मोदी घर घर मोदी

    यह सब वह नारे हैं जो पिछले 6-7 सालों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा जनता के लिए परोसे गए यह सारे नारे जनता के दिलों में एक सवाल बनकर अभी भी मौजूद हैं।

    आज सरकार के कर्मों से ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि कोरोना से अब देश की नदियों को भी खतरा पैदा हो गया है। बिहार के बक्सर में गंगा घाट पर लाशों की कतारें लग गई हैं। गंगा नदी में जिंदगी से जंग हार चुके लोगों के शव मौत के बाद भी हारते हुए दिखाई दे रहे हैं। जिंदगी से भी हारे और मौत से भी हार गए।
    सवाल यह है कि आखिर ये दर्दनाक मंजर किसकी लापरवाही है? क्या यह मजबूरी का नतीजा है? इस लापरवाही का पूरे देश को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
    देश बेहाल है। जनता मजबूर है सरकार लापरवाही के चलते खामोश है ऐसे में नदियों में लाशें बहाने के चलते कई तरह की संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। साथ ही इस लापरवाही के चलते दूसरों को अपनी जान भी गंवानी पड़ सकती है।
    हर तरफ जो तस्वीरें सामने आ रही है उसमें जल प्रदूषण और चील-कौवे, गिद्ध-कुत्तों का कहर दिखाई दे रहा है।
    बक्सर के चौसा श्मशान घाट पर गंगा के किनारे भारी तादाद में लाशों को नदियों में बहा दिया गया, जिसके बाद शव गंगा के किनारे आकर लग गए फिर गिद्ध और कुत्ते शवों को नोच-नोच कर अपना आहार बना रहे हैं।
    बक्सर में प्रधान सेवक की मां गंगा का किनारा शवों से पटा पड़ा है। कुत्ते शवों को नोच रहे हैं, मां गंगा सबका कष्ट हरती हैं और पाप धुलती हैं लेकिन इन दिनों बक्सर में खुद गंगा मईया कष्ट में हैं। उनका पुत्र नालायक और नाकारा साबित हुआ।
    जो मर गए हैं उनको चिता की अग्नि नसीब नहीं हो रही है और जो जिंदा है उनके खाने को अन्न नसीब नहीं हो रहा है। सरकार गरीबों का मजाक उड़ा रही है खाने के नाम पर ₹1000 महीना देने की घोषणा की है मिलेगा या नहीं मिलेगा यह तो बाद का सवाल है लेकिन ₹1000 का मतलब हुआ ₹33 प्रतिदिन। आज के इस दौर में जब महंगाई इतनी ज्यादा है सरसों का तेल 180 से ₹200 किलो बिक रहा है ऐसे में गरीब आदमी है ₹33 में प्रतिदिन दो वक्त कैसे खाना खाएगा?
    दूसरा बड़ा सवाल कि जो पंजीकृत है पैसा उन्हीं को दिया जाएगा सवाल है कि इस देश में पंजीकृत हैं कितने? 200 ₹300 प्रतिदिन कमाने वाले क्या फॉर्म भर के पंजीकरण करेंगे सरकार को इतना भी समझ में नहीं आता। जो भ्रष्टाचारी है उनके पास पैसा है उनको कोई दिक्कत नहीं है लेकिन जो ईमानदार है और रोज खाने कमाने वाले है वाले वह कोरोना से अगर बच गए तो भूख से मर जाएंगे।
    तबेला चलाने वाले देश कैसे चलाएंगे?

    जयहिंद।

    सैय्यद एम अली तक़वी
    ब्यूरो चीफ दि रिवोल्यूशन न्यूज़

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