लखनऊ, 6 जून 2025: 9 ज़िलहिज्जा को इराक के कुफे में जनाब-ए-मुस्लिम बिन अकील की शहादत की याद में लखनऊ में विभिन्न स्थानों पर सोग और मातम के आयोजन किए गए। जनाब-ए-मुस्लिम बिन अकील, जिन्हें कर्बला की पहली शहादत के रूप में जाना जाता है, को प्रोफेट मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन ने कुफे भेजा था। कुफे में उनके साथ विश्वासघात हुआ और यज़ीद की सेना ने उन्हें बेरहमी से प्यासा रखकर कत्ल कर दिया था। इस दुखद घटना की याद में लखनऊ में मजलिस, मातम और कुछ स्थानों पर जुलूसों का आयोजन हुआ।
लखनऊ के विभिन्न इमामबाड़ों और मस्जिदों में मजलिस का आयोजन किया गया, जहां शिया समुदाय के लोग एकत्र हुए और जनाब-ए-मुस्लिम बिन अकील की शहादत को याद करते हुए उनके बलिदान पर रोशनी डाली। मजलिस में मौलवियों और ज़ाकिरों ने कर्बला की घटना का ज़िक्र किया और मुस्लिम बिन अकील के धैर्य, वफादारी और इमाम हुसैन के मिशन के प्रति उनकी निष्ठा की चर्चा की।
शहर के प्रमुख क्षेत्रों जैसे नक्खास, हुसैनाबाद, और चौक में मातम की सभाएं आयोजित की गईं, जहां लोग सीनाजनी और नौहाख्वानी में शामिल हुए। कुछ स्थानों पर जुलूस भी निकाले गए, जिनमें शोकाकुल लोग काले वस्त्र पहनकर सड़कों पर निकले और मातम करते हुए जनाब-ए-मुस्लिम की शहादत को याद किया। जुलूसों में नौहा और मर्सिया पढ़ा गया, जो कर्बला की त्रासदी को बयान करता है।
लखनऊ, जो अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब और शिया-सुन्नी एकता के लिए जाना जाता है, में ये आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए। पुलिस प्रशासन ने जुलूसों और मजलिसों के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे, ताकि किसी भी तरह की असुविधा न हो।
स्थानीय लोगों ने बताया कि यह आयोजन न केवल जनाब-ए-मुस्लिम की शहादत को याद करने का अवसर है, बल्कि यह इमाम हुसैन के संदेश को जीवित रखने का भी प्रतीक है, जो अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। आयोजनों में शामिल लोगों ने कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी और उनके बलिदान को याद करते हुए एकता और भाईचारे का संदेश दिया।
हालांकि, इस खबर के लिए विशिष्ट समाचार स्रोतों से सीधे विवरण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन लखनऊ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शहर में इस तरह के धार्मिक आयोजन नियमित रूप से और गहरी श्रद्धा के साथ किए जाते हैं।