उत्तर प्रदेश 19 मई 2020 कहते हैं कि मजबूरी जो न कराये सो कम है। लॉकडाउन के दौरान मजबूरी का ऐसा ही एक उदाहरण शाहजहांपुर में देखने को मिला। एक बीमार पिता के इलाज और दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए मासूमों को ठेला खींचना पड़ रहा है। जिन हाथों में कलम होनी चाहिए थी उन हाथों में तराजू है।
लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश के शहाजहांपुर जिले से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जो दिलों को झकझोर देने वाली है। यहां जेठ की तपती दोपहरी में भाई-बहन तरबूज बेचते नजर आए। जिस ठेले को वे सड़क पर खींच रहे थे, उसकी ऊंचाई उन दोनों से थोड़ी ही कम थी, लेकिन घर में रोटी के लिए वे नंगे पांव अपनी मजबूरी की गवाही दे रहे थे।
ये मामला शहाजहांपुर शहर स्थित अंटा चौराहे के पास का है। यहां रविवार को भाई-बहन नंगे पैर तरबूज के ठेले को खींचते नजर आए। उनके तन पर ठीक से कपड़े भी नहीं थे। तरबूज बेचने के लिए दोनों अपनी मासूम निगाहों से ग्राहकों की तरफ देख रहे थे।
दोनों बच्चों की मजबूरी कुछ संवेदनशील लोगों को झकझोर गई तो उनके पास पहुंचे। इस बेबसी का कारण पूछा तो पता चला कि उनके पिता बीमार हैं। वे ही थे, जो मजदूरी कर घर का खर्च चलाते थे लेकिन अब हाथ खाली हैं।
घर में न राशन बचा है न ही रुपये। ऊपर से कोई मदद भी नहीं कर रहा है। ऐसे में दोनों भाई-बहन ही बीमार पिता व मां का पेट भरने के लिए सड़क पर निकल पड़े। इसके लिए उन्होंने कुछ लोगों से पैसे लेकर तरबूज खरीदे और अब उसी को बेचकर पैसे का इंतजाम कर रहे हैं।
बच्चों से जब पूछा गया कि उनके पापा क्या करते हैं? तो बच्चे की आवाज तो नहीं निकली, लेकिन उसके आंसू जरूर टपक गए। आंसू को छिपाने के लिए बच्चे ने अपना मुंह ढक लिया। भाई को रोता देख उसके साथ तरबूज बेचने निकली बहन की भी आंखें भर आईं।
कुछ देर में खुद को संभालते हुए उन्होंने बताया कि उसके घर में खाना नहीं है। कोई देने भी नहीं आया। इसलिए वह तरबूज बेच रहे हैं। बच्चे ने बताया कि वह सुबह से 300 रुपए के तरबूज बेच चुका है।