लखनऊ 8 मार्च 2020, महिला दिवस यानि महिलाओं का दिवस बात प्रारंभ होती है ,सन 1917 से जब रूस की महिलाओं ने युद्ध के दौरान ‘ब्रेड एंड पीस’ यानी ‘खाना एवं शांति ‘की मांग की।महिलाओं की हड़ताल ने वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया । ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार यह दिन 8 मार्च का था और उसी के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाया जाने लगा।
विश्व के अन्य देशों सहित भारतवर्ष के संविधान में भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही अधिकार दिए गए हैं । जहां सभी धर्मों में महिलाओं को एक विशेष दर्जा प्रदान किया गया है वहीं सनातन धर्म में संस्कृत के एक शश्लोक के अनुसार “यस्य पूज्यते नार्यस्तु ,तत्र रमन्ते देवता:” अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। किंतु क्या हम सच में इस भावना को अपने जीवन में चरितार्थ कर पाए हैं। आज व्हाट्सएप ,फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स वूमेंस डे की शुभकामनाएं से भरी हुई है। किंतु महिलाओं को शुभकामनाएं एवं बधाइयो का सच्चा मतलब तभी है जब हम औपचारिक दुनिया से बाहर आकर महिला उत्पीड़न एवं लिंग भेद के किसी भी मामले में अपनी आवाज को बुलंद करते हुए निरंतर अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते रहे। यह बात ‘द रेव्युलेशन न्यूज़ ‘के संपादक बहार अख्तर ज़ैदी से राजा झाऊलाल सद्भावना मिशन के संस्थापक डॉ अनूप श्रीवास्तव ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक विशेष चर्चा के दौरान कही।