### मोहर्रम की 9 तारीख: लखनऊ में मजलिसों का समापन और इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र

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मोहर्रम की 9 तारीख को लखनऊ में आयोजित होने वाली मजलिसों का समापन हो गया। इस दिन शहर के विभिन्न हिस्सों में जुलूस और मजलिसों का आयोजन किया गया, जिसमें इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में शहादत को याद किया गया। ये मजलिसें मोहर्रम के महीने में इमाम हुसैन की कुर्बानी और उनके परिवार की बहादुरी को श्रद्धांजलि देने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

मजलिसों में विशेष रूप से इमाम हुसैन के सबसे छोटे बेटे, हजरत अली असगर की शहादत का जिक्र किया गया, जिनकी उम्र मात्र 6 महीने थी। कर्बला के मैदान में यज़ीद की फौज ने निर्दयता से अली असगर को तीर मारकर शहीद कर दिया। इस दुखद घटना ने सभी के दिलों को झकझोर दिया। इसके अलावा, इमाम हुसैन की 9 वर्षीय बेटी, हजरत साकीना की पीड़ा और बलिदान को भी याद किया गया। मजलिसों में बताया गया कि इमाम हुसैन ने अपनी शहादत से पहले हजरत साकीना को समझाया कि उनके बाद उन्हें क्या करना है।

इमाम हुसैन ने अपने बेटे, हजरत जैनुल आबिदीन, जो उस समय बीमार थे, को जगाया और कहा, “अब तुम इमाम हो।” उन्होंने कर्बला के पूरे वाकये को विस्तार से बताया और उन्हें इमाम-ए-वक्त की जिम्मेदारी सौंपी। मजलिसों में इमाम हुसैन की जंग और उनकी शहादत की कहानी को बयान किया गया, जिसमें उनकी बहादुरी, धैर्य और सत्य के लिए दी गई कुर्बानी को विशेष रूप से उजागर किया गया।

इन मजलिसों में मौजूद लोग इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद कर भावुक हो उठे। कर्बला की घटना न केवल एक ऐतिहासिक वाकया है, बल्कि यह सत्य, न्याय और मानवता के लिए बलिदान का प्रतीक भी है। लखनऊ में मोहर्रम की 9 तारीख को आयोजित इन मजलिसों ने इस संदेश को और मजबूत किया कि इमाम हुसैन का बलिदान आज भी लोगों को प्रेरणा देता है।

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