इस वक्त जो देश के हालात हैं अगर बा जमीर इंसान गौर से देखें और समझे तो शायद हिंदुस्तान की मिट्टी के हर एक ज़र्रे से आवाज आ रही है कि मुझे बचा लो मैं हिंदुस्तान हूं। मैं मनीषा का हिंदुस्तान हूं।
पन्द्रह दिनों तक जीवन और मौत के बीच झूलती उत्तर प्रदेश के हाथरस जनपद की दलित लड़की मनीषा ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। बीते 14 सितंबर को सामूहिक बलात्कार के बाद आरोपियों ने उसकी जीभ काट ली थी और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। इस मामले में भारतीय समाज मौन रहा। वह भी किसी की बेटी थी किसी की बहन थी, भारत देश की बेटी थी। भारत की धरती हमारी मां है उस लिहाज से लोग कहां हैं धरती मां की बेटी के साथ जो हुआ बेकसूर होते हुए जो उसने अपनी जान गंवाई , खामोशी क्यूं?
उसके निधन के बाद कई सवाल उठते हैं और सवाल ऐसे हैं कि सिर्फ सवाल होते हैं इसका जवाब कभी नहीं मिलता चाहे वह निर्भया केस या दूसरी घटनाएं सिर्फ सवाल उठते हैं बस जवाब का पता नहीं चलता ।
सवाल ऐसे उठे हैं जो उत्तर प्रदेश में सत्तासीन योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं। सवाल भारतीय समाज के लिए भी हैं जिसका जमीर तभी जगता है जब को हमारे समाज की निर्भया वहशी दरिंदों का शिकार होती है। क्या इस अनदेखी और असंवेदनशीलता की वजह यह है कि हाथरस की बलात्कार पीड़िता दलित समाज की थी? गैंगरेप के बाद जीभ काटी, रीढ़ की हड्डी तोड़ी और गला भी दबाया। उत्तर प्रदेश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। कथित उच्च जाति के दबंग इतने बेख़ौफ़ हैं कि दलितों की हत्या और बलात्कार जैसे संगीन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
हकीकत यह है कि सरकार ने देश की जनता को धर्म और जाति और वर्ग के नाम पर इतना बांट दिया है कि लोगों में भी इंसानियत के बजाय हैवानियत पैदा हुई है लोग अपने आप को छोटा और बड़ा समझने लगे जब के सब एक ही ईश्वर की संतान है।
लेकिन अफसोस है कि चारों आरोपी उच्च जाति के हैं, जिनमें से तीन को गिरफ्तार कर लिया गया है। युवती के भाई ने आरोपी संदीप के खिलाफ शिकायत दर्ज की। संदीप के अलावा उसके चाचा रवि और उसके दोस्त लव कुश को गिरफ्तार किया गया है, एक चौथा आरोपी, रामू फरार है।
यह उच्च और निम्न जाति का खेल कब तक चलेगा इस खेल के नाम पर कब तक निर्दोषों की जान ली जाती रहेगी! इनको गिरफ्तार करने से काम नहीं चलेगा चारों के लिए सजा-ए-मौत का फरमान जारी होना चाहिए। वह भी फौरन।
कथित राष्ट्रवादी मीडिया ख़ामोश है क्योंकि इनकी सोच ही जातिवादी हो गई है। निर्भया कांड एक बार फिर लोगों के जहन में ताजा हो गया और शायद जिस तरह से सरकार और मीडिया काम कर रही है उससे निर्भया कांड भी हाथरस कांड के आगे छोटा दिखाई देने लगा है
दो हफ्ते तक अकेले जंग लड़ती हुई बेटी मौत की आगोश में चली गई। अपने आप पर शर्म करने का वक्त है सरकार और मीडिया को क्योंकि इन दो हफ्तों में सरकार और मीडिया ने क्या किया दोनों अपने में मस्त रहें उनको बस फालतू की खबरों को मसाला लगाकर चैनल पर परोसने में मजा आता रहा।
सोचिए एक बेटी के साथ गैंगरेप होता है वह भी वीभत्स उसके बाद उसके जबान काट दी,गर्दन तोड़ दी, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, मतलब ऐसी भयानक और विभत्स घटना ना कभी सुनी होगी और ना देखी होगी |
भारत वह देश है जहां समाज के हर तबके को अपने अधिकारों के साथ पूरी तरह जीने का हक है। ऐसे में दलित समाज के हक और अधिकारों को छीनने वाला कोई कौन होता है! कुछ दिन हंगामे के पास सब खामोश हो जाएंगे लेकिन पीड़िता का परिवार हमेशा के लिए इस तकलीफ को झेलता रहेगा।
जब तक हमारे देश में सख्त कानून नहीं बनेगा और लोगों के अंदर इस बात का डर नहीं पैदा होगा कि अगर हम कोई गलत काम करेंगे तो फौरन हमको सजा मिलेगी तब तक इस तरह के अपराध नहीं रुक सकते और दूसरी बात यह कि लोगों के दिलों से यह उच्च और निम्न वर्ग के भेदभाव को मिटाना होगा सब इंसान हैं सब एक ईश्वर की संतान है सब बराबर हैं। यह बात सरकार को अच्छी तरह समझ नहीं चाहिए और अपने लोगों को समझाना चाहिए।
जिस तरीके से एक बेकसूर हिंदुस्तान की बेटी की जान गई जाहिर सी बात है ना हम आप उसके दुख को कम कर सकते हैं ना उसकी जिंदगी वापस ला सकते हैं ना परिवार के दुख को कम कर सकते हैं लेकिन कम से कम विरोध प्रकट करके स्वयं अपनी आत्मा को सुकून तो दे सकते हैं ईश्वर से यही कामना है ईश्वर मनीषा की आत्मा को शांति दे।
जय हिन्द।
सैय्यद एम अली तक़वी
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