मीडिया को क्या कहा जाए कुछ समझ में नहीं आता। नमक मिर्च लगा कर समाचार पेश करने में महारत हासिल कर चुकी है।
आज प्रदेश सरकार एवं प्रशासन के ऐलान को बगैर सोचे समझे ब्रेकिंग न्यूज और जल्दी खबर देने की मीडिया की जल्दबाजी ने फिर एक बार फिर जनता को परेशान कर दिया। जनता एक बार फिर घरों से बाहर निकल आई। हर तरफ भाग दौड़ मच गई।
आखिर यह मीडिया की कैसी प्रवृत्ति है जो गैरजिम्मेदार हरकतें करती रहती है। मीडिया की अधूरी और बढ़ा चढ़ा कर खबर परोसने की प्रवृत्ति ने लोगों को मुश्किल में डाल रखा है। जनता के साथ साथ प्रशासन को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
राज्य की जनता में हड़बड़ाहट और परेशानी साफ दिखाई दे रही है। जिसका नतीजा यह हुआ कि पूरे राज्य में माहौल खराब हो गया और लोग आपाधापी में बाजारों और दुकानों पर टूट पड़े। हालत ये हो गई कि पेट्रोल पम्पों से लेकर किराने की दुकानों पर सामानों की खरीददारी के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा है और सोशल डिस्टैंसिंग का माहौल पूरी तरह ध्वस्त होता दिखाई दे रहा है।
लेकिन तारीफ़ करनी होगी पुलिस प्रशासन की जो स्थिति को संभालने के लिए फौरन सड़कों पर आ गए। पुराने लखनऊ में पुलिस कमिश्नर एवं डीएम साहब साथ में मौके पर पहुंचे और जनता से कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है जैसे मार्केट पहले खुलती थी वैसे ही खुलेगी कोई परेशानी की बात नहीं है।
लेकिन सवाल महत्वपूर्ण है कि मीडिया की प्रवृत्ति से वाकिफ सरकार ऐसा क्यूं करती है। बस सिर्फ घोषणा कर दी। किसी भी घोषणा से पहले उसके असर और परिणाम के बारे में चिंतन क्यूं नहीं होता? यह पहला मौका नहीं है। इससे पहले भी नोटबंदी, जीएसटी, जनता कर्फ्यू, लाकडाउन जैसे फैसलों से आपाधापी मच चुकी है। जनता लाइनों में लग चुकी है।
मैं यह नहीं कह रहा कि घोषणा ग़लत है हां घोषणा करने का तरीका सही नहीं है। घोषणा जनता के लिए है इसलिए जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए सही समय पर घोषणा करनी चाहिए। जनता को भी धैर्य से काम लेना चाहिए। अभी चौदह तक लाकडाउन है इसके बढ़ाने की जब घोषणा होगी तो फिर एक बार हाहाकार मचेगा।
धैर्य से काम लें, देश आपका, सरकार आपकी।
एक दूसरे की मदद करें।
ईश्वर सहायता करेगा।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
syedtaqvi12@gmail.com