अभी मैं इंडिया टीवी की एक क्लिप देख रहा था जिसमें पढ़े लिखे इंसान राजत शर्मा बहुत कुछ बयान कर रहे थे जिसमें वह महाराष्ट्र के स्थिति का जिक्र कर रहे थे और वह कह रहे थे कि महाराष्ट्र सरकार ने 144 लागू कर दिया है आधा अधूरा लॉकडाउन किया है लेकिन उससे क्या फायदा क्योंकि जगह-जगह लोगों की भीड़ है स्टेशन पर लोगों की भीड़ है लोग पलायन कर रहे हैं और सारा दोष भी उनको दे रहे थे कि भीड़ समझ नहीं रही है मास्क नहीं लगा रही है और दूरी का ख्याल नहीं कर रही है अब ऐसे पढ़े लिखे इंसान को क्या कहा जाए जो पढ़ने लिखने के बावजूद नासमझ जैसी बातें कर रहा है सवाल सबसे बड़ा यह है कि 1 साल का वक्त गुजर गया 1 साल के बीच आखिर सरकार ने क्या किया जनता नेताओं को चुन करके इसीलिए लाती है कि वह देश को संभाले और देश को संभालने के लिए पूरी एक श्रृंखला है प्रधानमंत्री है प्रधानमंत्री के अंतर्गत हर प्रदेश का एक मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री के अंतर्गत प्रदेश के हर शहर का एक सांसद है उसके बाद हर हर शहर के अंदर हर इलाके का एक विधायक हैं विधायक के अलावा हर वार्ड का एक पार्षद उन पार्षदों को देखने के लिए एक मेयर है। इन सबके अंडर में काम करने वाले हजारों नौकरी करने वाले लोग हैं। इतनी लंबी चौड़ी संख्या होने के बावजूद यह फ्लॉप शो क्यों?
देश प्रैक्टिकल और जमीन पर काम करने से चलता है सिर्फ नारेबाजी स्लोगन वक्तव्य स्टेटमेंट नये शब्दों के साथ खेल से देश नहीं चलता है। जब कोई इंसान किसी काम करने के योग्य नहीं होता है और उसको करने की कोशिश करता है तो यही स्थिति पैदा होती है। गलती पर गलती करता जाता है और चीजें उलझती चली जाती है और अंजाम बहुत बुरा होता है।
2 गज दूरी मास्क है जरूरी , ताली थाली दीया बाती, कोरोनावायरस रिंगटोन, टीका उत्सव जैसे नारों से किसी बीमारी का इलाज संभव नहीं है इससे सिर्फ लोगों के जहन को बांटा जा सकता है और अपनी वाहवाही कराई जा सकती है।
पिछले साल मार्च में कोविड-19 शुरू होने के बाद से 1 साल के बीच में आखिर सरकार ने क्या तैयारी की? आज सारा दोष जनता के ऊपर क्यों मढ़ा जा रहा है जनता इसके लिए कतई जिम्मेदार नहीं है इसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो शासन प्रशासन और सरकार की व्यवस्था।
हालत यह हो गई है कि 1 साल के बाद भी न तो अस्पताल के अंदर कोई व्यवस्था है ना बेड है ना ऑक्सीजन है और हद हो गई कि मरने के बाद लाशों को ले जाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था भी ठीक नहीं है इससे बुरी स्थिति और क्या सकती है लेकिन इसके बावजूद किसी के माथे पर शिकन नहीं है परेशान है तो सिर्फ जनता रोजगार खत्म हो रहा है व्यवसाय चौपट हो रहा है दुकानें बंद हो रही हैं लेकिन फिर भी दोष जनता को ही दिया जा रहा है।
उनको दोष क्यों नहीं दिया जा रहा है जो बंगाल में हजारों लाखों की तादाद में रैलियां कर रहे हैं दोष उनको क्यों नहीं दिया जा रहा है जो पंचायत चुनाव के नाम पर हजारों को इकट्ठा करके ट्रेनिंग दे रहे हैं दोष उनको क्यों नहीं दिया जा रहा है जो स्नान के नाम पर लाखों लोग इकट्ठा किए हैं और खामोश तमाशा देख रहे हैं। इकट्ठा होने वाले दोषी नहीं है व्यवस्था देखने वाले शासन प्रशासन दोषी हैं।
स्कूल बंद कर दिया कोचिंग बंद कर दी रात्रि कर्फ्यू लगा दिया मंदिर मस्जिद में पाबंदी कर दी सब पालन कर रहे हैं कहीं कोई नहीं जा रहा है ना स्कूल में ना कोचिंग में ना मंदिर मस्जिद में ऐसी पाबंदी चुनाव और रैलियों में क्यों नहीं लगाई गई क्या सिर्फ इसलिए कि उससे उनको खुद को फायदा हो रहा है।
जिस तरह से सुबह उठते ही सोशल मीडिया खोलते ही लगातार मौत की तस्वीरें सामने आती हैं उससे वाकई दिल दहल जाता है यह क्यों हो रहा है यह सिर्फ इसलिए हो रहा है कि लोगों को प्राथमिक उपचार नहीं मिल रहा है फिर देश के हर इंसान को इस बात को अच्छी तरह समझना चाहिए कि फर्स्ट एड सबसे जरूरी होती है प्राथमिक उपचार पूरे देश में खोल दिया जाए स्थिति काबू में आ जाएगी पिछले साल जब लॉकडाउन की स्थिति शुरू हुई थी मार्च में उस वक्त कोविड-19 बहुत कम केस थे लाकडाउन लगातार लगाने के बाद भी कोविड के नाम पर केस बढ़ते गए क्योंकि प्राथमिक उपचार एकदम बंद कर दिया गया था आखिर शुगर ब्रेन हेमरेज एक्सीडेंट बीपी हार्ट अटैक कैंसर टीवी और सैकड़ों तरह की बीमारियों का इलाज कहां हो रहा है कैसे हो रहा है इस बात को क्यों नहीं समझा जा रहा है।
समझ में नहीं आ रहा इस देश में क्या हो रहा है देश किस तरफ जा रहा है हे ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे और इस देश की रक्षा कर।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
ब्यूरो चीफ दि रिवोल्यूशन न्यूज़