मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर भी ध्यान दे मौलाना

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कल माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 संवैधानिक वैधता बरक़रार रखने का फैसला सुनाया,

हम तमाम मुसलमान इस फैसले का सम्मान करते हैं, और धन्यवाद देते हैं,
और उन गैर मुस्लिम भाइयों का भी जिन्होंने मदरसे बंद करने के फैसले के खिलाफ हमारी आवाज से आवाज बुलंद की,
यही हमारे देश की गंगा जमुनी तहज़ीब है,
जिससे पूरी दुनिया में हमारा देश पहचाना जाता है,
मेरी व उन लोगों की जो मदरसों के पक्ष में आवाज बुलंद करते रहे थे
‘अल्लाह के लिए”
इन मदरसों में सुधनवा, अच्छी शिक्षा देने के लिए अच्छे टैलेंटेड अध्यापकों बगैर कोई लालच के नियुक्ति किए जाएं,और
बच्चों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक एवं आधुनिक शिक्षा दे ,
ताकि भारत सरकार के हर कंपटीशन/ रिसर्च में बच्चे अव्वल आए,
जिससे वो लोग जो अपने बच्चों को क्रिश्चियन मिशनरीज़ स्कूल मे पढ़ने भेजते,और हर संभव कोशिश करके एडमिशन कराते है,
ये बात कहते हुए बड़ी तकलीफ हो रही है कि आज के मदरसों के संस्थापक, अध्यापक खुद अपने बच्चों को उन मदरसों में नहीं पढ़ाते जिसका वो संचालन एवं बच्चों को शिक्षा देते हैं,
मेरा ख़्याल है कि मदरसे में सुधार के लिए अनिवार्य करना चाहिए कि मदरसे के संस्थापक,कमेटी, सदस्य और अध्यापक व कर्मचारी अपने बच्चों को उन्ही मदरसों में पढ़ाये ,
जिसके वो संस्थापक एवं अध्यापक हैं,

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