बुरा-बुरा ही,चाहे वह बादशाह करें या ख़लीफा-इमाम हुसैन(अ,स)

    0
    209

    लेखक एस.एन.लाल
    इमाम हुसैन (अ.स.) की कुर्बानी और शहादत के मतलब सभी अपने-अपने हिसाब से निकालते है,

    कोई कहता है इमाम ने पूरी इंसानियत को बचाया, कोई कहता नाना का दीन बचाया, कोई कहता है ज़ुल्म के लड़ना सिखाया और कहता है नाना के बाद से अहलेबैत पर ज़ुल्म करने वालों के चेहरों पर से नकाब को करबला में इमाम ने नोच फेंका, दुश्मन का चेहरा और उसके ख़ानदान का चेहरा दुनिया के सामने ले आये। एस.एन.लाल
    ये सही है इमाम ने अपने पूरे ख़ानदान व दोस्तो की कु़र्बानी देकर ये सभी कुछ बचाया, और दुश्मनों का चेहरा दुनिया के सामने लेकर आये। लेकिन अगर कोई इन सबका सुबूत मांगे..तो हम कैसे देंगे..क्योंकि यह हमारा अक़ीदा और किताबों में लिखा है।….! एस.एन.लाल
    यह बात और लोगों ने भी सोची होगी…ये मै नहीं कहता…, लेकिन मेरे ज़हन मंे सुबूत पेश करने की जो बात है, वह आपके सामने रखता हॅूं।
    आप करबला के वाक़िये से पहले दुनिया में की कहीं भी हुकूमत देखे…। सभी जगह एक ही बात देखने को मिलेगी…, कि जो राजा, बादशाह या खलीफ (लोगों द्वारा बनाया हुआ) जो बात करता या कहता था, वह बात सच, अच्छी और नेक होती थी। और जिन बातों को वह बुरा कहता था, वह भी बुरी होती थी। जैसे गुलामों को ख़रीदना-बेचना या लड़कियों को दफन करना अच्छा समझा। कहीं सती प्रथा (जोकि काफी बाद में हटी), या देवदासी प्रथा को अच्छा समझा जाता था, इसी तरह और भी देशों में भी बुराईयों को अच्छा समझा जाता था, क्योंकि बादशाह व खलीफा अच्छा मानते थे। एस.एन.लाल
    इमाम हुसैन (अ.स.) ने कुर्बानी देकर इस बात को साफ कर दिया कि बुरा-बुरा, अच्छा-अच्छा है। अगर बादशाह या खलीफा भी बुरी बात करता है तो उसको बुरा कहो, एक आम इन्सान अच्छा काम करता है, तो अच्छा कहो। बुराई के खिलाफ भी आवाज़ बुलन्द करो, बिना डरे…! चाहे तुम्हारे साथ कोई हो या न हो। सच बात हो, तो एक आम आदमी का भी साथ भी दो। यही वजह थी, इमाम के साथ 72 शहीद होने वालों में हर धर्म व कबीले के लोग शामिल थे। करबला की घटना के बाद से लोगो ने ज़ुल्म सहना छोड़ दिये, ज़ुल्म के खिलाफ खड़े नज़र आने लगे। दुनिया के पर्दे पर कहीं दूसरी ऐसी तस्वीर नज़र नहीं आती, कि सही को सही कहने के लिए डटे रहे, ज़ुल्म पर ज़ुल्म होते रहे…, आप सोचे जिसका 6 महीने का बच्चा क़त्ल कर दिया…, तब भी वह सही के लिए डटे रहे…! कि सच, सच है। सख़्त से सख़्त दिल वाला आदमी भी परिवार पर ज़ुल्म होते देखकर टूट जायेगा। लेकिन इमाम ने संसारिक लड़ाई हारने के बाद भी, अपने मक़सद और उद्देश्य में विजय पाई और यही जीत इमाम को आज भी जिन्दा किये हुए है। जोकि आम इन्सान की ताक़त बनी हुई है। एस.एन.लाल

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here