पृथ्वी दिवस : 22 अप्रैल।। संसाधनों की भूख से खाली होती धरती की पुकार: सुशील द्विवेदी

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    21 अप्रैल, लखनऊ।दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा और प्रदूषण को कम करने वाली कोशिशों को समर्थन देने के लिए हर साल 22 अप्रैल को ‘पृथ्वी दिवस’ (Earth Day) मनाया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने वाले हर कार्यक्रम की तरह हर वर्ष इसकी एक अलग थीम होती है जिसके द्वारा एक विशेष मुद्दे पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है। इस वर्ष पृथ्वी दिवस 2020 के लिए ‘जलवायु कार्रवाई, थीम है। जलवायु परिवर्तन मानवता के भविष्य और जीवन-समर्थन प्रणालियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, माना जा रहा है वर्तमान समय की 90 प्रतिशत समस्याओं के पीछे जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अप्रैल 2020 की रिपोर्ट में एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के देशों को आगाह किया है कि इन देशों के ऐसे लोग या मरीज जो लम्बे समय से वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं उन्हें कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा है। मौत होने की आशंका भी ज्यादा बढ़ सकती है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) ने बीते साल 2019 में दुनिया की एयर क्वालिटी रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के तीस सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से राजधानी दिल्ली समेत 22 शहर भारत के हैं।
    ऐसे में, भारत देश पर अपनी धरती और पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है। पूर्व में भी हम पृथ्वी दिवस की थीम के अनुसार प्रयास करते रहे हैं लेकिन वे नाकाफी सिद्ध हुये।
    इस साल 2020 में ‘क्लाइमेट एक्शन’ थीम को लेते हुए पर्यावरणविद, विज्ञान संचारक व
    लेखक (द एनर्जी रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट अर्थात टेरी द्वारा आयोजित होने वाले इंटरनेशनल ग्रीन ओलंपियाड के प्रदेश समन्वयक) सुशील द्विवेदी कहते हैं कि पृथ्वी पर हर 20 मिनट पर मानव आबादी में 3600 का इजाफा हो रहा है। तो, वहीं दूसरी ओर जीव-जंतुओं की एक प्रजाति लुप्त हो रही है। हालात ऐसे ही बने रहे तो अगले 30 सालों में धरती की 20 फीसदी प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी।
    वहीं, कैलिफोर्निया में जारी की गई ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क की रिपोर्ट के अनुसार 2019 का ‘अर्थ ओवरशूट डे’ 29 जुलाई को पड़ा था। अर्थात बीते साल सात महीनों के भीतर इंसान ने प्राकृतिक संसाधनों का साल भर का कोटा फूंक दिया था। इसका मतलब है कि मानवता ने हमारे ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल 1.75 गुना तेजी से किया है। यह रफ्तार इकोसिस्टम के प्राकृतिक रूप से पुर्नजीवित होने की दर से तेज है।
    दूसरे शब्दों में कहें तो इंसान इस साल इतने पेड़ों और जीवों का सफाया कर चुका है, जितने प्राकृतिक रूप से पैदा ही नहीं होते। यह प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने का सबूत हैं। हमारे पास सिर्फ एक ही पृथ्वी है और यही इंसान का अस्तित्व भी तय करती है। घातक नतीजों के बिना हम 1.75 गुना पृथ्वी जितने संसाधन इस्तेमाल नहीं कर सकते। प्राकृतिक संसाधनों के अथाह दोहन के सबूत घटते जंगलों, बढ़ते भूक्षरण, जैवविविधता के नुकसान और वातावरण में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में देखे जा रहे हैं।
    धरती पर मौजूद इंसान की आबादी अप्रैल 2020 तक 7.8 अरब पहुंच चुकी है। इस आबादी को ऊर्जा और ट्रांसपोर्ट मुहैया कराने में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन हो रहा है।
    ऐसे कई तरीके हैं जिससे हम अकेले और सामूहिक रूप से धरती को बचाने में योगदान दे सकते हैं। वैसे तो हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके संरक्षण के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। लेकिन अपनी व्यस्तता में व्यस्त इंसान यदि विश्व पृथ्वी दिवस के दिन ही थोड़ा बहुत योगदान देता है तो इससेे पर्यावरण प्रदूषण मुक्त हो नदियां अस्मिता बहाली के लिये मोहताज न हों। धरती रहने के काबिल हो। मिट्टी, बीमारियां नहीं वरन सोना उगले। यदि दुनिया के लोग अर्थ डे के दिन यह प्रण लें कि हम कम से कम कार्बन फुटप्रिंट जनरेट करने वाली जीवन शैली अपनाएंगे, पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को नकारेंगे, कागज का इस्तेमाल कम करेंगे,म रिसाइकल प्रक्रिया को बढ़ावा देंगे, शाकाहारी बनने का प्रयास करेंगे, तो पृथ्वी दिवस सारी दुनिया के समाज के लिये रस्म अदायगी का नहीं अपितु उपलब्धियों का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने वाला तथा आने वाली पीढ़ियों के लिये सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलाम धरती सौंपने का दस्तावेज होगा और हम धरती के कर्ज को उतरने में कुछ हद तक सफल हो पाएंगे।

    पर्यावरण करेगा आपका धन्यवाद

    दुनिया खतरे में है। तरक्की की दौड़ में हमने प्रकृति के साथ ऐसा खिलवाड़ किया है जिससे पृथ्वी के वातावरण में जहरीली गैसों का जमाव बेहिसाब बढ़ा है। इससे जलवायु असन्तुलित हो गई है और धरती का तापमान बढ़ने लगा है।इससे मौसम का मिजाज भी बदल रहा है। आने वाले बरसों में सूखे और बाढ़ से तबाही की सम्भावना बढ़ी है। हम धरती को बचाने में अगर थोड़ी-सी भी मदद कर सकें तो, हमारी छोटी-छोटी कोशिशें मिलकर बड़ा फर्क ला सकती है। ये कोशिशें कुछ इस प्रकार हो सकती हैं :
    – जहां भी हो सके ऊर्जा बचाएं। यह बचत आपके फालतू के खर्च भी कम करेगी।
    – एलईडी तकनीक वाले बल्बों का इस्तेमाल करें ये न केवल कम कार्बन फुटप्रिंट पैदा करते हैं बल्कि ज्यादा सालों तक चलते भी हैं।
    – नन्हें इंडिकेटर और स्टैंडबाय मोड पर अटके गैजेट्स भी कई किलो कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं। इसलिए जब जरूरत हो तभी उपयोग करें।
    – वाॅशिंग मशीन तभी चलाएं जब उचित मात्रा में कपड़े हों।
    – स्टार लेवल वाले उपकरण 15 प्रतिशत तक बिजली बचाते हैं।
    – गाड़ी के टायरों में हवा सही रखकर तीन प्रतिशत ईंधन बचा सकते हैं।
    – अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं। एक अकेला वृक्ष अपनी जिन्दगी में एक टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है।
    – स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल से ऊर्जा की खपत आधी की जा सकती है।
    – डिब्बाबन्द चीजों से बचें। आपकी किफायत दुनिया को बचा सकती है।
    – अगर हो सके तो प्राकृतिक (अक्षय) ऊर्जा प्रयोग में लाएं।
    – छोटी-मोटी दूरी के लिए गाड़ी निकालने की बजाए पैदल या साइकिल का उपयोग करें।
    – लंबी दूरी हेतु संभव हो तो रेल से यात्रा करें क्योंकि वायुयान से यात्रा में सबसे ज्यादा कार्बन फुटप्रिंट जेनरेट होते हैं।
    – केवल जरूरत की चीजें खरीदें क्योंकि प्रत्येक चीजों को बनाने प्रसंस्कृत करने के पीछे वर्चुअल वॉटर के रूप में पानी का उपयोग छिपा रहता है।
    – ऐसे पर्यावरण सम्मत तरीके से बनाए गए सामानों का और जहां तक हो सके सैकेंड हैंड चीजों को ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें। जब आप कुल मिलाकर कम चीजों का उपभोग करेंगे तो उससे पृथ्वी के संसाधन बचेंगे और वह प्रचुर मात्रा में और अधिक प्राकृतिक संसाधन आपको देगी।
    – हर साल उगाया जाने वाला करीब एक तिहाई खाना बर्बाद हो जाता है। कम से कम अपने स्तर पर तो आप खाने की और बर्बादी को रोक ही सकते हैं। कुछ बच जाए तो अगली बार खा लें, बाकी बचे जैविक कचरे को डालकर कम्पोस्ट बना लें। इसे अपने लिए सब्जियां और फल उगाने में इस्तेमाल करेंगे तो खाने में रसायनों से भी बचेंगे। कई शोध दिखाते हैं कि खाने की बर्बादी जलवायु परिवर्तन का भी एक कारण है। इससे जैवविविधता पर असर पड़ता है और जमीन में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा भी बढ़ती है।
    – बिजली का इस्तेमाल बचत के साथ करें, कमरे से निकलते समय लाइट, पंखा बंद करना, काम के बाद कंप्यूटर या कोई और स्क्रीन बंद करना, ऐसे छोटे-छोटे कदम दूरगामी बचत करते हैं। धीरे धीरे यह आदत बन जाती है और आप अपने पर्यावरण को बचाने के लिए अनजाने में ही योगदान कर रहे होते हैं।
    – जहां कहीं भी संभव हो वहां जलवायु परिवर्तन के कारकों को रोकने के लिए आवाज उठाएं। इसके लिए हर किसी को सड़क पर उतरने की जरूरत नहीं है लेकिन आप अपने स्थानीय नेता पर इसका दबाव बना सकते हैं। इस बारे में अपने जानने वालों से बात कर सकते हैं। याद रखिए, बात करने से ही बात बनती है।
    – जो लोग मांसाहारी हैं वे भी अपने खानपान में ज्यादा से ज्यादा पौधों से मिलने वाली चीजों को जगह देकर पर्यावरण को बचाने में मदद कर सकते हैं। मीट कभी-कभी खाएं और डेयरी उत्पादों का सीमित उपयोग करें। वैज्ञानिक दृष्टकोण से शाकाहारी लोगों का कार्बन फुटप्रिंट मांसाहारी लोगों से बहुत कम होता है।
    – प्लास्टिक के कारण बढ़ते प्रदूषण और जीव जंतुओं पर उसके दुष्प्रभाव की जितनी बात की जाए कम है। समुद्र प्लास्टिकों से अट गए हैं। अगर आप चीजें ज्यादा से ज्यादा रिसाइकिल करेंगे तो कम प्लास्टिक इस्तेमाल में आएगा।
    – अगर चाहें तो अपसाइकिल के विकल्प को भी आजमा सकते हैं। सोचिए, रचनात्मक बनिए और एक ही चीज का पूरा इस्तेमाल कीजिए।
    – पानी को बर्बाद ना करें, आरओ के वेस्ट पानी को बाल्टी में एकत्र करके पेड़ों में या घर की सफाई, कार की सफाई में उपयोग करें।
    – बरसात के पानी का संग्रह करने के लिए नए घरों को बनाते समय रूफ वॉटर कलेक्टर सिस्टम या रेन हार्वेस्टर लगाएं।

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