प्राकृतिक संसाधनों की मदद से ही मानव जीवन का निर्माण होता है या यूं कहा जाए की मानव जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है।
हजारों सालों से इंसान की जिंदगी प्रकृति पर निर्भर है लेकिन अफसोस की बात है कि पिछले कुछ दशकों से हमने जरूरत से ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी की है और इन प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल इंसान ने अपने फायदे के लिए किया है। इंडस्ट्रियलाईजेशन हो या फिर अर्बनाइजेशन यानी जिसको हम शहरीकरण कहते हैं इसका निर्माण मानव ने बड़े पैमाने पर किया है। जिसका नतीजा यह हुआ कि पृथ्वी पर वातावरण बदल गया अनेकों परिवर्तन हुए तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया ओजोन की परत में छेद हो गया और साथ ही साथ हर जगह बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति से सामना करना पड़ा अर्थात समस्याएं बढ़ गई।
प्रकृति के बिना मानव जीवन संभव नहीं है। ऐसे में हमें इस प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए। प्रकृति को बचाना चाहिए अर्थात जो चीजें ईश्वर ने हम को प्रदान की हैं उसकी रक्षा करना मानव का कर्तव्य है। प्रकृति के इसी महत्त्व को देखते हुए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस अर्थात World Environment Day मनाया जाता है। इसके माध्यम से प्रकृति के प्रति लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया जाता है। 1972 में ही इस दिन को मनाने की नींव राखी गई थी।
हमारे लगातार दोहन से प्रकृति की स्थिति लगातार ख़राब हुई है। ऐसे में हमें कुछ ऐसे तरीके अपनाने चाहिए, जिससे हम पर्यावरण की रक्षा में योगदान दे सकें।
आज के समय में प्लास्टिक का उपयोग सबसे अधिक पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। प्लास्टिक की वजह से कितने ही जीव आज विलुप्त होने की कगार में है। समुद्री जीवों को भी प्लास्टिक ने बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है। कछुए, मछली, सीबर्ड और अन्य जीव जन्तुओं को इसका सामना करना पड़ रहा है।
इसके अलावा आज के समय में मनुष्यों के लिए सबसे बढ़ी समस्या पानी है। लगातार पानी की कमी हो रही है। ऐसे में बारिश के पानी का संरक्षण करना चाहिए। पानी की लगातार समस्या के बावजूद जनता की आंख नहीं खुल रही है आज भी बहुत से लोगों को पानी बर्बाद करते हुए देखा जा सकता है। शहरों में रहने वाले लोग पानी से अपने घरों के गेट और गाड़ियां अक्सर धुलते हुए दिखाई देते हैं जिससे कि पानी की बर्बादी होती है हमें इस चीज को समझना चाहिए और अनावश्यक रूप से पानी को बर्बाद नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा आज के दौर में पौधे प्रकृति के लिए बहुत जरुरी है यह पर्यावरण की हवा को शुद्ध करने के साथ ही तापमान को भी स्थिर रखने में मदद करते हैं। साथ ही ओक्सीजन का सोर्स भी है। जिसके बिना मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता है। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन हवा में छोड़ते हैं उसी ऑक्सीजन से इंसान सांस लेता है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में हर वर्ष पेड़ काट दिए जाते हैं जिससे कि पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ता है। लेकिन इंसान को इस बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है।
इस बार 47वां विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है. इस दिन को मनाने का मुख्य कारण है व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति सचेत करना। हम इंसानों और पर्यावरण के बीच बहुत गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। हम अक्सर अपने पर्यावरण को बचाने की बाते करते रहते हैं। पर्यावरण दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य है कि लोगों को पर्यावरण की अहमियत, इंसानों व पर्यावरण के बीच के गहरे संबंध को समझाते हुए प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा सके।
गौरतलब है कि दुनिया में कोरोना वायरस महामारी के कारण देशों ने लॉक़ाउन लगा रखा है जिसके कारण सड़कों पर यातायात बंद है। पूरी दुनिया के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले 60 वर्षों में किए गए तमाम प्रयासों और जलवायु परिवर्तन के अनगिनत विश्व स्तर पर समझौतों के बावजूद पर्यावरणीय स्थिति में वो सुधार नहीं हो पाया था जो पिछले 60 दिनों में वैश्विक लॉकडाउन के चलते हुआ है।
इस पर्यावरण दिवस पर आप अपने घर में पौधे या आसपास फिर पेड़ लगाएं। इससे आपके घर को पेड़ की छाया, ताज़ा हवा भी मिलेगी और पर्यावरण की भी मदद होगी।
इसके अलावा पर्यावरण को अच्छा बनाने के लिए पॉलीथीन का उपयोग नहीं करना चाहिए और सब्जी व सामान के लिए कपड़े की थैलियां इस्तेमाल करनी चाहिए साथ ही साथ इधर-उधर थूकने की आदतों से भी परहेज करना चाहिए और आने वाली नई पीढ़ी को इस बात को अच्छी तरह समझना होगा।
कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से भारत में हवा की गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे उपायों का इस्तेमाल गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आपातकालीन उपाय के रूप में किया जा सकता है।
बहुत से ऐसे पर्यावरणीय कारक हैं, जो भारत में लॉकडाउन की वजह से देखने को मिले हैं। लॉकडाउन में औद्योगिक और मानवीय गतिविधियां कम होने के कारण हवा की साफ हुई है, ध्वनि प्रदूषण कम हुआ है, जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और जैवविविधता समेत कई अन्य चीजों में सुधार देखने को मिला है।
विशेषकर शहरी क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में बड़ा सुधार हुआ है, जो गंभीर या खराब श्रेणी से अब संतोषजनक या अच्छी स्थिति में पहुंच गई है। इसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों का कम होना है।
प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों, उद्योगों, फसल-अवशेष जलाने, अपशिष्ट जलाने आदि की वजह से होता है। शहरों में, आधे से अधिक वायु प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण होता है। ऐसी चलने के कारण होता है। लॉकडाउन के दौरान सड़क पर वाहनों की संख्या में बड़ी कमी आई, जिसकी वजह से शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में कमी आई है। लाकडाउन के कारण सभी ऑफिस और कार्यालय बंद होने के कारण प्रदूषण में कमी आई है।
लॉकडाउन जैसे उपायों से भविष्य में प्रदूषण का मुकाबला किया जा सकता है। जब लॉकडाउन लागू हुआ, तो कोई भी वास्तव में पर्यावरण के बारे में नहीं सोच रहा था क्योंकि लोग पूर्ण लॉकडाउन के प्रत्यक्ष नतीजे को देख रहे थे लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए और हम घर के अंदर जीवन यापन के लिए संघर्ष करते रहे, हम अपने आसपास के वातावरण को बदलते हुए देखने लगे। सबसे अधिक ध्यान देने योग्य प्रभाव यह हुआ कि स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी, कम अपशिष्ट, बहुत कम शोर और लगभग समाप्ति की ओर बढ़ रहे वन्यजीव देखने को मिले।
हालांकि जब कोविड-19 का खतरा कम हो जाएगा, तो चीजें फिर से जल्दी सामान्य हो जाएंगी । तो ऐसे में यह उम्मीद है कि लोग जीवन शैली में आये कुछ बदलावों को बरकरार रखेंगे जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं।
लॉक डाउन खत्म होने के बाद आने वाले समय में हमें इन सब चीजों का बहुत ध्यान रखना होगा।
उम्मीद है कि हम अपनी और आने वाली पीढ़ियों के लिए इन तमाम बातों पर गौर करेंगे और पर्यावरण को सुरक्षित रखने का पूरा प्रयास करेंगे।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
निदेशक- यूरिट एजुकेशन इंस्टीट्यूट
syedtaqvi12@gmail.com