इंसान की जुबान किस हद तक अमर्यादित हो सकती है यह दिल्ली चुनाव में साफ पता चल गया। एक दूसरे को बुरा भला कहने की सारी मर्यादाएं टूट गई हैं और इंसानियत एवं संवेदनाएं तो हैं ही नहीं। सिर्फ झूठ बोलने की रेस लगी थी। एक-दूसरे का विरोध आदर के साथ भी किया जा सकता है। अमर्यादित भाषा तभी इस्तेमाल की जाती है जब लोग मानसिक संतुलन खो देते हैं या हताशा बढ़ जाती है।
बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय कहते हैं कि जो प्रधानमंत्री पर उंगली उठायेगा वह उसकी उंगली तोड़ देंगे और हाथ काट डालेंगे।
दिल्ली के चुनाव में नेताओं के जुबानी वार ने सारी हदें पार कर दी हैं। शाहीन बाग की तुलना पाकिस्तान से करने के बाद बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल को आतंकी और नक्सली बताया। वर्मा ने कहा कि जैसे नक्सली और आतंकी सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं वही काम दिल्ली के सीएम भी कर रहे हैं। केजरीवाल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें इस बयान से काफी दुख पहुंचा है।
रिठाला से BJP उम्मीदवार मनीष चौधरी के समर्थन में एक जनसभा में अनुराग ठाकुर ने चुनावी रैली में आए लोगों को भड़काऊ नारा लगाने के लिए उकसाया. रैली में वित्त राज्य मंत्री ने कहा ‘देश के गद्दारों को’, जिसपर भीड़ ने कहा, ‘गोली मारो………।
अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, गिरिराज, योगी आदित्यनाथ, कपिल मिश्रा, प्रकाश जावड़ेकर ये सब आने वाले समय के भारत रत्न हैं जिनके मुंह से सिर्फ आग निकलती है।
यह तो कुछ उदाहरण हैं लेकिन लगभग हर बिगड़े नेता ने बहती गंगा में हाथ धोने का प्रयास किया।
ऐसा लग रहा है कि पढ़ाई, अस्पताल, रोज़गार, जीवन जैसे मुद्दे तो जनता के लिए खत्म हो गये हैं।
भारतीय राजनीति में भाषा की ऐसी गिरावट शायद पहले कभी नहीं देखी गयी होगी आज ऐसा वक्त आ गया है कि ऊपर से नीचे तक सड़कछाप भाषा ने राजनीति में अपनी पकड़ बना ली है। शायद अब शब्दों को भी नेताओं से डर लगने लगा है क्योंकि उनके दुरूपयोग की घटनाएं लगातार जारी हैं। राजनीति जिसके सहारे देश चलता है और देश उन्नति करता है, वह खुद गहरे भटकाव की शिकार है और दल-दल में धंसती जा रही है।
यह गिरावट हर तरफ दिखाई दे रही है। न पद का लिहाज, न आयु का, ना ही भाषा की मर्यादा।
यानी हमाम में सब नंगे हैं। राजनीति से व्यंग्य, हंसी, परिहास सब गायब है। उसकी जगह गालियों ने ले ली है। राजनीतिक विरोधी को दुश्मन और देशद्रोही समझा जा रहा है।
बड़े पदों पर बैठे राजनेता भी चुनाव में अपने पद की मर्यादा भूलकर बेहूदा टिप्पणियां करते हैं, क्या परिणाम होगा यह तो समय बताएगा मगर यह सच है कि मौजूदा समय राजनीति भाषा की गिरावट का समय है।
संसद से लेकर विधानसभाओं तक में बहस का स्तर गिर रहा है। नेता सदनों में लड़ रहे हैं, मीडिया में तो पूरी तरह एक दूसरे से लड़ने पर आमादा रहते हैं। गाली गलौज के अलावा मार पीट पर उतर आते हैं। बहुत कठिन समय चल रहा है। अब राजनेताओं, राजनीतिक दलों और राजनीतिक विश्लेषकों को नई राह तलाशनी होगी जिससे एक अच्छे संवाद की उम्मीद पैदा हो।
आज गंभीरता, मुद्दे, और लोगों का दर्द गायब है। राजनीतिक दलों में गिरावट की दौड़ शुरू हो गई है। कौन ज्यादा गिर सकता है मुकाबला इस बात का है।
डॉ. राममनोहर लोहिया शायद इसीलिए कहते थे “लोकराज लोकलाज से चलता है।” पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि अगर राजनीतिक दल गलत उम्मीदवारों को आपके बीच भेजते हैं तो राजनीतिक दलों की गलती ठीक करना जनता का काम है। वे पोलिटिकल डायरी नामक पुस्तक में लिखते हैं- “कोई बुरा उम्मीदवार केवल इसलिए आपका मत पाने का दावा नहीं कर सकता कि वह किसी अच्छी पार्टी की ओर से खड़ा है। बुरा-बुरा ही है और किसी का भी हित नहीं कर सकता।
बहरहाल दिल्ली देश की राजधानी है पूरी दुनिया की नज़र इस चुनाव पर रही होगी। मगर नेताओं ने खूब नाम रोशन किया। खासकर जब रिंकी के पापा जैसे लोग जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए आगे आयेंगे तो देश का भगवान मालिक है।
आज भारत में राजनीति का मैदान कीचड़ से भरा हुआ है उसे साफ करने के लिए जनता को आगे आना होगा और उसके लिए कान, आंख खोल के रखने होंगे। अंधभक्ति से देश का वातावरण सही नहीं होगा।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
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