मुसलमानों के लिए जहां से नफरत की बीज बोया गया, वहीं से भारत में इस्लाम की शुरुवात हुई है।
एस.एन.लाल
नमाज़ षब्द भारत की देन है क्योंकि इस्लाम में इबादत (पूजा) को सलात कहां गया है, जोकि अरबी षब्द है। लोग कहते है कि नमाज़ फारसी का षब्द है आपको फारसी में मिल भी जायेगा। लेकिन हर भाषा का नियम है अगर कोई षब्द बनता है, तो उस षब्द का मूल होता है, यानि फारसी में उसे ‘मसदर’ बोलते है। लेकिन फारसी में नमाज़ का कोई मूल नहीं है, अगर फारसी में ‘नम’ कहे तो उसके माने होंगे ‘भीगा’ या ‘गीला’। जोकि नमाज़ से मेल नहीं खाता। संस्कृत में ‘नम’ षब्द के माने होते ‘सर झुकाना’ और ‘अज’ वैदिक षब्द है जिसके के माने होते ‘अजन्मा’ यानि भगवान (खुदा)। तो नमाज़ के माने हुए ‘जिसको कोई जन्म नहीं दे सकता उसके सामने सर झुकाते हैं’ और यही वेदों में भी है। एस.एन.लाल
आश्चर्य की बात और है जब ‘काबे’ की ओर यानि मुसलमान दक्षिण की ओर मुॅंह करके नमाज़ नहीं पढ़ता था, तब भारत में मस्जिद बन चुकी थी, तब मुसलमान उत्तर की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ता था। ये बात 1397 वर्ष पहले की है यानि 622 ई0 में भारत में ये मस्जिद बनी, जब मोहम्म्द साहब जीवित थे और मुसलमान अपना पहला काबा ‘यरूशलेम’ (उत्तर) की मानते थे और उधर ही मुॅह करके नमाज़ पढ़ते थे। ‘यरूशलेम’ मुसलमानों का किबला 610 से 623 ई0 तक रहा यानि 13 साल मुसलमानों ने उत्तर की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ी। भारत में बनी ये मस्जिद गुजरात के भावनगर स्थित गांव घोघा में है जिसे बरवाड़ा मस्जिद या जूनी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। ये मस्जिद आज बरवाड़ा जमात की देखरेख में हैं। यानि इस्लाम आरम्भ के साथ ही भारत पहुंच चुका था, पूजा, इबादत और भाई-चारे के बलपर। एस.एन.लाल
‘यरूशलेम’ में यहूदियों और ईसायों के भी पवित्र स्थल है और वह लोग भी अपनी इबादत का स्रोत ‘यरूशलेम’ को ही मानते है। आगे आने वाले समय में झंगड़े-फसाद होने का डर था, बेकसूर लोगो की जान को खतरा होते का डर था, लेकिन मोहम्मद साहब झगड़े- फसाद के खिलाफ थे, वह प्यार-मोहब्बत का पैग़ाम दे रहे थे। जबकि ‘यरूशलेम’ पर मुसलमानों का कब्ज़ा 1033 ई0 तक रहा यानि जब काबा बदला गया, तब वहां मुसलमानों की हुकूमत थी, लेकिन किसी को तकलीफ न पहुंचे, ये बात ज़्यादा माने रखती है इस्लाम में। मोहम्मद साहब ने 11 फरवरी 624 ई0 से मक्का में स्थित काबा को मोहम्मद साहब ने अल्लाह का घर बताया और उसी ओर मुॅह करके सलाम (नमाज़) पढ़ने का हुक्म दिया। एस.एन.लाल
बात यहीं ख़त्म नहीं होती, चेरामन मस्जिद तो याद होगी, जहां भारत रत्न ए.पी.जे अब्दुल कलाम गये थे, उसी के बाद से लोग उसे जाने थे। केरल राज्य के मेथला, कोडुंगल्लूर तालुक, त्रिशूर जिले में स्थित है ये मस्जिद। यह मस्जिद एक हिन्दू राजा चेरामन के नाम से जानी जाती है। यह महस्जिद भी मोहम्मद साहब के जीवनकाल में ही 629ई0 में बनी थी, लेकिन इस मस्जिद का रुख दक्षिण की ओर है जिसकी वजह मक्का शहर में स्थित काबा तब बन चुका था। एस.एन.लाल
इसकी कहानी कुछ यू है कि राजा चेरामन पेरुमल ने चंद्रमा के विभाजित होते आकाश में देखा, (कुरान में उल्लेखित एक अलौकिक घटना), तो राजा हतप्रभ हो गया, राजा ने अपने ज्योतिषियों से पुष्टि की और अरब से आये व्यापारी जोकि मालाबार बंदरगाह पर आए थे, उनसे पूछा तो मोहम्मद साहब के बारे में राजा को पता चला, तो राजा ने मोहम्मद साहब के दर्शन करने का निर्णय लिया और अपने बेटे को अपने राज्य का प्रतिनिधि बनाकर मोहम्मद साहब से मिलने मक्का चल दिया। जब मिलकर लौट रहा था, तब ही उसने अपने राज्य के लोगो का मस्जिद बनवाने का आदेश दी और 629ई0 में भारत में दूसरी मस्जिद बनी। इस मस्जिद 1504 ई0 में पुर्तगालियों ने नष्ट कर दी थी। फिर इस मस्जिद को 16वीं शताब्दी के मध्य में पुनःनिर्माण किया गया। एस.एन.लाल
ये चीज़ इस बात को साफ करती है, भारत के नागरिको द्वारा इस्लाम को गले लगाया गया क्योंकि इस्लाम मोहब्बत और भाई-चारे के सहारे भारत में दाखिल हुआ। एस.एन.लाल