दिल्ली का दिल क्यूं रोया?

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    पिछले दिनों उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, यमुना विहार, बाबरपुर, खजूरी खास में दिल्ली की जनता की गाड़ियों, दुकानों और घरों में आग लगाई गई और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पिछले करीब बीस सालों में यह सबसे बड़ा साम्प्रदायिक दंगा है, जिसमें काफ़ी लोगों की मौत हो गई। की दिनों तक नालों से लाशें निकलती रही। लेकिन सरकार के कानों में रूई लगी हुई थी। अफसोस तो केजरीवाल पर होता है और साथ ही साथ दिल्ली पुलिस पूरी तरह नाकारा साबित हुई।
    आंकलन से तो यही पता चला कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में दिल्ली पुलिस की विफलता के पीछे कई कारण हैं, जैसे- हिंसक घटनाओं को डील करने में शीर्ष लोगों में अनुभव की कमी, नेतृत्व में विश्वास की कमी और विभाग की तरफ से लगातार स्थिति के आकलन में विफलता और नफरत का वायरस और पुलिस का पक्षपातपूर्ण रवैया।
    रिटायर्ड अधिकारियों ने तो सीधे तौर पर मौजूदा दिल्ली पुलिस डीसीपी पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनमें ऐसी स्थिति के सामना करने का कोई अनुभव नहीं है।

    एक गलती को सही साबित करने के लिए हंगामा किया जा रहा है। जान ली जा रही है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सही कहा कि काला कानून वापस ले लो देश में सुकून वापस आ जायेगा।

    दंगे अपने आप नहीं होते। और न तो ऐसा है कि लोगों को गुस्सा आ गया और वे दूसरों को मारने के लिए निकल पड़े। दंगा हमेशा एक ऐसी कार्रवाई है, जिसे बहुत सोच-समझ कर किया जाता है। हर दंगाई ये भी चाहता है कि उसे अपना कोई नुकसान न हो और वह सुरक्षित लौट आए। इसकी बाकायदा योजना बनाई जाती है। और दिल्ली में तो दंगाइयों के साथ पुलिस सहयोग साफ दिखाई दिया।
    ये सोच और बहाना भी गलत है कि दंगा हमेशा बाहर से आए लोग करते हैं। हां यह बात सही है कि पीड़ित पक्ष बोलता है कि बलवा करने वाले बाहर से आए थे। इसकी वजह यह है कि उन्हें भविष्य में भी उन्हीं लोगों के साथ रहना होता है, जिन्होंने उनके खिलाफ हिंसा की है। लेकिन उन राजनेताओं का क्या किया जाए जो हिंसक भाषा का प्रयोग करते हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।

    सवाल चिंतित करने वाला है ।
    1-दिल्ली की हिंसा से किसे राजनीतिक लाभ हुआ?
    2-कुछ ही हफ्ते पहले हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी हारी और आम आदमी पार्टी को जीत हासिल हुई, उस सूबे में दंगा कैसे हुआ?
    3- क्या इन दंगों के पीछे कोई आर्थिक कारण था?
    4-क्या इन दंगों से किसी को आर्थिक लाभ हुआ?
    5- पूर्वोत्तर दिल्ली में ऐसा क्या है कि दंगे इसी इलाके में हुए?
    6- पूर्वोत्तर दिल्ली के किस इलाके में दंगे नहीं हुए और ऐसा क्यों हुआ?
    जिस दिन इसका जवाब मिल गया षड्यंत्र का पता चल जाएगा।
    और सबसे अफसोस की बात और चिंता करने वाली चीज यह है कि जब दिल्ली में दंगे शुरू हुए तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा उसके सारे गणमान्य नेता असहाय बन कर खामोश रहे। व्यापक समर्थन के साथ
    जनता ने केजरीवाल पर अपना भरोसा जताया फिर ऐसा क्या हुआ कि लहू-लूहान और दर्द से कराहती रोती बिलखती तड़पती सिसकती दिल्ली की जनता के बीच जाकर उनका दुःख दर्द बांटने के बजाय केजरीवाल उदासीन बने रहे।यह शक पैदा करता है।

    बहरहाल, देश को बरबादी से बचाने के लिए हर राजनेता को अपने अहंकार को खत्म करना होगा एवं ईमानदारी से कार्य करना होगा।
    जयहिंद।

    सैय्यद एम अली तक़वी
    syedtaqvi12@gmail.com

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