राजनीति तो बहुत देखी भारत देश नें। लेकिन जनता को बलि का बकरा बना कर जो राजनीति इस वक्त हो रही है वह ग़लत है। जनता बेकसूर है। दोष उसका है जिसने नमस्ते ट्रंम्प कार्यक्रम किया, दोष उनका है जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को जारी रखा। दोष उनका है जिन्होंने पूरी तरह टेस्टिंग की व्यवस्था नहीं की, दोष उनका है जिन्होंने बग़ैर किसी प्लान के लाकडाउन लगाया, दोष उनका है जिन्होंने मरीजों को पूरे भारत में फैलाने का काम किया।
लेकिन जनता तो मर रही है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि आदमी सड़क पर मरे जानवर खा रहा है। मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय जनता भूखों मर रही है। लेकिन सरकार को बस-बस खेलने में मजा आ रहा है।
कांग्रेस द्वारा एक हज़ार बसों की व्यवस्था करने के बाद प्रदेश सरकार की कुर्सी हिलने लगी और तमाम कानूनी दांवपेंच लगाये जाने लगे। बसें बार्डर पर खड़ी हैं। जनता फंसी है। और सरकार नम्बर और फिटनेस चेक करने की बात कर रही है। आखिर मजदूरों को उनके घर पहुंचाने में सरकार क्यूं डर रही? क्या कांग्रेस की गुगली में फंस गई सरकार?
सवाल बहुत हैं कि क्या सरकार की फिटनेस सही है जो उसने प्राइवेट कर्मचारियों को उनके हाल पर छोड़ दिया! क्या वह वोट नहीं देते? क्या वह इंकमटैक्स नहीं देते? क्या अर्थव्यवस्था में उनका योगदान नहीं है? क्या वह इस देश के नागरिक नहीं है?
अब बात प्रवासी मजदूरों की जो कुआं खोद के पानी पीते हैं। और सरकार इन्हीं प्रवासी मजदूरों को सड़क पर लावारिस छोड़ कर बातों में लोगों को उलझाने का प्रयास कर रही है।
जब सरकार को रैली करनी होती है तो नियम कानून कहां चले जाते हैं? फिटनेस की बात क्यूं नहीं होती? कभी परिवहन निगम की बसों को भी चेक करले सरकार! चार दिन से बसें खड़ी हैं । सोशल मीडिया पर साफ देखा जा सकता है और तो और ड्राइवर भी कहते नजर आ रहे हैं कि बसें ठीक हैं। इस वक्त मजदूरों का पहुंचना जरूरी है। कभी चुनाव से पहले या बाद ही सही नेताओं का फिटनेस टेस्ट हुआ! उसे भी कर लेते तो आज यह दिन ना देखने पड़ते।
बहरहाल सरकार हर मोर्चे पर विफल हो रही है। शायद उसने यह मान लिया है कि वह कुछ नहीं कर सकती है इसलिए जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है। डब्लू एचओ को खुश करने के लिए लाकडाउन तो चल रहा है मगर धज्जियां ऐसे उड़ रही हैं जैसे कांटों में रेशमी कपड़ा। डब्लू एचओ से ईनाम तो मिल ही गया डॉ हर्षवर्धन को एक्जिक्यूटिव बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया।
जनता के जागने का वक़्त आ गया है। अब तो समझ जाओ कि एकता में ही बल है। वरना जो हाल अंग्रेजी राज में हुआ वही अब होगा या यूं कहूं कि हो रहा है। Divide and Rule.
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
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