यह भी एक अजब संयोग है कि हमारा देश भारत जो कि कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है उस कृषि प्रधान देश के किसान आज लाचार और मजबूर होकर अपने हक के लिए पिछले 2 महीनों से अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। सुनने वाला कोई नहीं है। हो भी कैसे क्यूंकि आवाज सुनने के लिए सुनने की क्षमता होनी चाहिए जो शायद नहीं है।
कड़ी सर्दी में जब लोग अपने घरों में हीटर और ब्लोअर के साथ जीवन गुजार रहे हैं वही देश का अन्नदाता किसान सड़कों पर दिन का कोहरा और रात की ओस का सामना करते हुए अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है।
कितने अफसोस की बात है कि जो किसान अन्न का पैदा करने वाला है जिसके ऊपर मनुष्य की जिंदगी निर्भर करती है मनुष्य अपना पेट किसानों के सहारे भरता है आज वही किसान अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़क पर बेसहारा बैठा हुआ है।
पूरे देश में तीन कानून, तीन कानून की चर्चा हो रही है। तीन कानून क्या है क्यों है कैसे है किस लिए है किसके लिए इन सब के सवालों का जवाब जानना जरूरी नहीं है सबसे बड़ा और प्रमुख सवाल यह है कि सरकार जो चीज किसानों के लिए लागू करना चाहती है अगर किसान उसके लिए राजी नहीं है तो बात ही खत्म हो जानी चाहिए और इन बिलों को खत्म कर देना चाहिए यह जोर-जबर्दस्ती यह ज़िद्द आखिर किस बात के लिए?
भीमराव अंबेडकर के सिद्धांत और संविधान की इस वक्त पूरे देश में धज्जियां उड़ाई जा रही हैं जिस संविधान को बाबा साहब नागरिकों की समानता और देश की तरक्की के लिए बना कर गए थे आज उसके विपरीत काम हो रहा है।
आखिर ऐसे फैसले क्यों लिए जा रहे हैं जिससे जनता सड़क पर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो रही है पिछले कई सालों से लगातार जनता सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है इस देश को न जाने क्या हो गया है। नोटबंदी में जनता सड़कों पर आ गई , जीएसटी के खिलाफ प्रदर्शन हुए, एनआरसी सीएए के खिलाफ जनता दिन और रात सड़कों पर बैठी रही, महंगाई के खिलाफ लोग धरना प्रदर्शन करते रहे, कोविड-19 में प्रवासी मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्य टहलते रहे। फिर कोविड-19 का सहारा लेकर के सड़कों पर धरना प्रदर्शन, अधिकारों की मांग , इंसाफ की मांग कर रहे लोगों को घरों में कैद कर दिया गया। व्यवसाय चौपट हो गया छोटे व्यवसाई बर्बाद हो गया जिसका असर आज भी देखने को मिल रहा है खासतौर से शिक्षा का क्षेत्र पूरी तरीके से तबाह बर्बाद हो गया।
2021 का गणतंत्र दिवस एक ऐसा गणतंत्र दिवस है जो रोता, बिलखता, कराहता हुआ शायद जनता की नजरों में बहुत आशा और उम्मीद के साथ देख रहा है। शायद गणतंत्र दिवस की आंखें किसानों के ऊपर लगी है शायद गणतंत्र दिवस की आंखें उम्मीद के साथ सड़क पर आते हुए ट्रैक्टर्स पर लगी हुई है। शायद गणतंत्र दिवस बहुत उम्मीदों के साथ उस विपक्ष की तरफ भी देख रहा है जो अपनी राजनीतिक रोटी सेकने पर लगे हुए हैं। गणतंत्र अपने देश के नागरिकों को आवाज दे रहा है। शायद गणतंत्र भारतीय हुक्मरानों से कह रहा है कि मुझे क्यों कुचल रहे हो मुझे क्यों मार रहे हो मुझे क्यों बर्बाद कर रहे हो।
भारतीय गणतंत्र शायद यह कहना चाह रहा है कि मैं वह गणतंत्र हूं जिसने सभी भारतीय नागरिकों को एक समान दृष्टि से देखा है मेरी नजर में सभी भारतीय हैं जिनके हर क्षेत्र में अपने अधिकार हैं चाहे वह शिक्षा का अधिकार हो, रोजगार का अधिकार हो, बोलने का अधिकार हो, लिखने का अधिकार हो, व्यवसाय का अधिकार हो या देश में रहने का अधिकार हो।
भारतीय मीडिया को क्या कहा जाए उसके पास जमीन से जुड़ी हुई कोई खबर नहीं है नागरिकों से जुड़ी हुई कोई खबर नहीं है शिक्षा बेरोजगारी महंगाई इन से जुड़ी कोई खबर नहीं है। उसके पास अगर कुछ है तो बस हथियार, गुफायें, हिंदु मुस्लिम, राष्ट्रभक्ति, देशद्रोह है जिसका औचित्य नहीं है बस चैनल पर हर वक्त एक ही बात कि हमारे सामने कोई दुश्मन टिक नहीं सकता सवाल यह है कि हमारे देश का दुश्मन कोई बने ही क्यों?
क्या हमारे देश में मकानों की समस्या खत्म हो गई , क्या हमारे देश में रोजगार की समस्या हल हो गई, क्या हमारे देश की सड़कें गड्ढा मुक्त हो गई, क्या हमारे देश में बिजली आपूर्ति पूर्ण रूप से होने लगी, क्या हमारे देश में इंसान इंसान को इंसान समझ रहा है? ऐसे बहुत से सवाल है जो एक आम नागरिकों के दिमाग में उठ रहे लेकिन अफसोस है कि सवाल उठाने का भी अब अधिकार नहीं रहा!
ऐसे विचित्र और डरावने माहौल में 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस कैसे मनाया जाएगा किस हाल में मनाया जाएगा यह भी बहुत बड़ा सवाल है। लेकिन लाखों सलाम उन किसानों पर जो इस कड़ाके की सर्दी में अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने कृषि चिन्ह ट्रैक्टर्स के साथ गणतंत्र दिवस में परेड निकालने के लिए तैयार है।
कृषि प्रधान देश में समस्त कृषक नागरिकों को और देशवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
एडिटर इन चीफ- दि यूरिट न्यूज़
syedtaqvi12@gmail.com