धर्म आस्था का प्रतीक है और सभी धर्म सम्मानित और सम्माननीय और सब धर्म की इज्जत करनी चाहिए। किसके धर्म की किताब में क्या लिखा है यह बहस का विषय नहीं है चाहे वह गीता हो चाहे क़ुरआन हो चाहे वह गुरु ग्रंथ साहिब हो सब एक विशेष धर्म की किताबें हैं जिसको उनके अनुयाई मानते हैं। सभी धर्म में एक ही बात कही गई है सिर्फ भाषा का अंतर है।
इतनी बात समझने के बाद अगर कोई व्यक्ति धार्मिक ग्रंथों के बारे में गलत बात करता है तो शायद उसके अंदर की इंसानियत मर चुकी है। राजनीति और धर्म दो अलग-अलग चीजें हैं। राजनीति में धर्म को नहीं शामिल करना चाहिए और धर्म में राजनीति को नहीं शामिल करना चाहिए लेकिन जो व्यक्ति सिर्फ कुर्सी के लालच में सरकार को खुश करने के लिए चापलूसी करने के चक्कर में अपने जमीर अपनी आत्मा को बेच करके ऐसी बातें कर रहा है जिससे समाज में सुख और शांति भंग होने का ख़तरा हो ऐसे व्यक्ति का पूरी तरीके से सामाजिक और धार्मिक बायकॉट करना बहुत जरूरी है
आइये बात करते हैं कुरआन की।
कुरआन अल्लाह की किताब है। इसमें फेर-बदल नामुमकिन है। प्रत्येक धर्म में “वही” एक आधारिक तत्व है। और वह धर्म जिसके नबी पर की गयी “वही” बाद की उलट फेर से सुरक्षित रही वह धर्म “इस्लाम” है। तथा अल्लाह ने (इस सम्बन्ध में प्रत्य़क्ष रूप से) वादा किया है कि वह क़ुरआन के संदेश को सुरक्षित रखेगा। जैसे कि क़ुराने करीम के सूरए हिज्र की आयत न. 9 में लिखा (वर्णन) हुआ है कि-
“इन्ना नहनु नज़्ज़लना अज़्ज़िक्रा व इन्ना लहु लहाफ़िज़ून”
अनुवाद– हमने ही इस क़ुरान को नाज़िल किया है (आसमान से भेजा है) और हम ही इसकी हिफाज़त (रक्षा) करने वाले हैं।
इतिहास भी इस बात का गवाह है कि क़ुरआन में कोई फेर बदल नही हुई है। ग़ौर करने वाली बात यह है कि इस्लाम भी अन्य आसमानी धर्मों की तरह(उन धर्मों को छोड़ कर जिनमें फेर बदल कर दी गयी है) नबीयों को मासूम मानता है। और “वही” को इंसानों तक पहुँचाने के सम्बंध मे किसी भी प्रकार की गलती (त्रुटी) का खण्डन करता है।
जैसे कि क़ुरआने मजीद के सूरए नज्म की आयत न. 3 और 4 में बयान (वर्णन) हुआ है कि
“व मा यनतिक़ु अनिल हवा इन हुवा इल्ला वहीयुन यूहा।”
अनुवाद–वह (नबी) अपनी मर्ज़ी से कोई बात नही कहता वह जो भी कहता है वह “वही” होती है।
यह वही अल्लाह की तरफ़ से होती है।
जरूरी बात यह है कि इंसान पहले कुरआन पढ़े फिर बात करे। कुरान इंसान की हिदायत के लिए कुरान अमन और शांति के लिए है।
तमाम ओलमा हजरात ने यह बात साफ कर दी है और कहा है कि पूरी दुनिया के मुसलमानों का क़ुरान पर पूरा एतबार है और क़ुरान में सिर्फ़ अच्छाईयां बतायी गई है।
कुरआन में दिलो को जोड़ने की बात की गई है।
शजरा ए ख़बीसा के लोगों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि क़ुरान में 26 आयतें हटाना तो दूर की बात है ज़ेर और ज़बर भी ऊपर नीचे नहीं किया जा सकता है।
कुरान पर उंगली उठाने वाले पहले भी आए लेकिन सिवाय रुसवाई के उनको कुछ नसीब ना हुआ चाहे सलमान रुश्दी हो, तस्लीमा नसरीन हो या तारिक फतेह यह सब लानती लोग हैं ।इस कैटेगरी में एक और नाम जुड़ गया है। मगर अफसोस की बात है कि यह ऐसा नाम है जो अपने नाम के आगे और पीछे सैय्यद और रिजवी लगाए हुए हैं। लेकिन इसके लगा लेने से किरदार नहीं बनता किरदार बनता है अमल से।
सरकार को चाहिए कि इस ख़बीस के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करे और तमाम उम्मते मुस्लिमा को भी चाहिए कि एक प्लेटफार्म पर आकर ऐसे नाज़ेबा हरकत के लिए उसके खिलाफ आवाज उठाएं।
सैय्यद एम अली तक़वी
लखनऊ
syedtaqvi12@gmail.com