यूं तो मैं तीन नवम्बर से बुखार और दर्द से जूझ रहा था। जांच कराने पर पता चला कि टायफाइड और डेंगू का प्रकोप है। बहरहाल कलम पूर्णतया स्वस्थ है और हक़ बोलने के लिए तैयार है। किसी का पक्ष लेने के लिए नहीं।
बिहार चुनाव के बाद हर तरफ से लोग असदुद्दीन ओवैसी के ऊपर प्रहार कर रहे हैं कोई उन्हें वोट कटवा बता रहा है कोई उन्हें भाजपा की बी टीम बता रहा है तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी लगातार असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी पर वोट कटवा होने और बीजेपी की बी टीम होने जैसा इल्जाम लगा रही है यह इल्जाम सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी या उनकी पार्टी पर नहीं बल्कि उनको वोट देने वाले हजारों लाखों वोटर्स के ऊपर भी इल्जाम है। क्या कांग्रेस ने तेजस्वी यादव की सीटों को कम करने का काम नहीं किया! क्या मुसलमान हमेशा दूसरी सियासी पार्टियों का वोटर्स बन कर रहे क्या वह अपनी पार्टी अपना नेता नहीं बना सकती है। यही तो हमारा लोकतंत्र है।
और सबसे अहम बिंदु यह है कि असदुद्दीन ओवैसी ने जिन 5 सीटों पर विजय हासिल की है वहां से मुसलमानों नहीं बल्कि हिंदू भाइयों, दलित भाइयों तथा अन्य इन सब का वोट मिला है किसी एक तबके का वोट पाकर कोई सीट नहीं जीतता है इस बात को हमें समझना चाहिए जबरदस्ती निराधार बातें करने से कोई फायदा नहीं है सकारात्मक राजनीति करिए नकारात्मक राजनीति मत करिए।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में चार करोड़ से ज्यादा वोटिंग हुई थी और इनमें से 1.24 फीसद वोट एआईएमआईएम को मिले हैं। और कांग्रेस को सबसे ज्यादा प्रॉब्लम इन 1.24% वोटों से है। 2015 में ओवैसी की पार्टी को 0.5% वोट मिले थे। मतलब यह हुआ कि ओवैसी की पार्टी ने तरक्की की। अगर आप इतने ज्यादा धर्मनिरपेक्ष अर्थात सेकुलर हैं और मुसलमानों के वोट पर अपने अधिकार को जताते हैं तो क्यों नहीं ओवैसी की पार्टी को अपने गठबंधन में मिला लिया अगर शायद मिला लिया होता तो आपकी 10 से 12 सीटों में इजाफा होता। शायद आपको मुस्लिम वोटर्स चाहिए मुस्लिम नेता नहीं वह भी पढ़ा लिखा।
सबसे पहली बात तो यह है कि जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं सब को यह संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वह चुनाव लड़ें और अगर कांग्रेस को या किसी पार्टी को यह लगता है कि ओवैसी की पार्टी के लोगों से उनका वोट कट जाता है तो जितनी पार्टियां हैं सबके ऊपर इलेक्शन लड़ने पर रोक लगा दें और अकेले चुनाव लड़ें । यह कैसी मूर्खता पूर्ण बातें हैं।
आरोप लगाने से पहले सबसे पुरानी और वरिष्ठ पार्टी अखिल भारतीय कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो उसके पारंपरिक वोट बैंक थे वह दूर हो गए। इसे 2019 में कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री जनाब सलमान खुर्शीद ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एमएमयू) में एक कार्यक्रम के दौरान बताया कि उनकी पार्टी और उनके दामन पर मुसलमानों के खून के धब्बे लगे हैं। उन्होंने पूरे विस्तार से कांग्रेस और मुसलमानों की कहानी बताई।
फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने सलमान खुर्शीद के हवाले से कहा कि ‘हमारे दामन में ख़ून के धब्बे हैं और इसी वजह से आप हमसे ये कह रहे हैं कि अब अगर आप पर कोई वार करे तो हमें बढ़कर उसे रोकना नहीं चाहिए, हम ये धब्बे दिखाएंगे… कि तुम समझो कि ये धब्बे तुम पर लगे हैं, ये धब्बे तुम पर न लगे, तुम वार इन पे करोगे धब्बे तुम्हारे लगेंगे, हमारे (कांग्रेस) इतिहास से कुछ सीखो और समझो, इसके बाद अपना हश्र ऐसा मत करो कि तुम 10 साल बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी आओ और आप जैसा कोई सवाल पूछने वाला भी न मिले। यह बहुत चिंताजनक वक्तव्य था।
कांग्रेस क्यूं नहीं बताती कि 1947 में आज़ादी के बाद हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, मुरादाबाद, भागलपुर, अलीगढ़ आदि जगहों पर मुसलमानों का नरसंहार हुआ। इसके अलावा बाबरी मस्जिद के दरवाजे खुलवाना और पूजा और शिलान्यास करवाना फिर इसका विध्वंस आदि घटनाएं कांग्रेस के शासन काल में हुई हैं।
क्या उस वक्त की देश की कांग्रेस सरकार और प्रधानमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति इतना कमजोर था कि वह एक मस्जिद की रक्षा न कर पाए। या तो कमजोरी मान लीजिए कि हां कमजोर था अगर आप इस पद पर बैठकर इतने कमजोर थे तो आपको सत्ता हासिल करने और राजनीति करने का कोई हक नहीं है कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के इन तमाम धब्बों को आप किन शब्दों के ज़रिये धोएंगे?
हालांकि ना तो मैं किसी राजनीतिक पार्टी में हूं और ना जाने का इरादा रखता हूं लेकिन हां 2 साल पहले किसी कांग्रेस के एक नेता से मुलाकात की और बहुत सारी बातें हुई और शायद वह मेरी बातों से प्रभावित थे उसके बाद उन्होंने कुछ वरिष्ठ नेताओं से बातचीत की मुझे कांग्रेस में शामिल करवा कर कोई पद देना चाहा ऐसे में यहीं के एक सक्रिय कार्यकर्ता (शायद पदाधिकारी भी) से जब उनकी मुलाकात हुई तो इन सक्रिय कार्यकर्ता ने फौरन मना किया कि अरे आप इनको कहां लेकर आ रहे हैं और यह बात उन्होंने मुझसे बताई। ऐसे हैं कांग्रेसी कार्यकर्ता इसीलिए कांग्रेस की हालत ऐसी हो रही है। जिसे समझने की जरूरत है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी कहा था कि कांग्रेस के शासनकाल में 5000 दंगे हुए।
2019 में ही एक समाचार चैनल से बातचीम में नकवी ने कहा था कि भिवंडी से भागलपुर और मेरठ से मलियाना तक कांग्रेस तथा कांग्रेस के सेक्युलरिज़्म के सूरमाओं ने निर्दोष लोगों की हत्याओं को देखा है। हां यह बात भी सच है कि भाजपा के शासनकाल में भी गुजरात में दंगे हुए और अयोध्या मौके पर काफी दंगे हुए।
सवाल यही है कि कांग्रेस के शासनकाल में 5000 दंगे हुए हैं और कांग्रेस ने दंगों की आड़ में अपनी राजनीति चमकाई है। इस शर्मनाक इतिहास पर देश की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी!
क्या क्या लिखूं कांग्रेस पर सिर्फ़ मुसलमानों के ख़ून के धब्बे नहीं बल्कि सिखों के भी ख़ून के धब्बे भी लगे हैं क्या आप और आपकी सरकार तब भी कमज़ोर थी! ऐसा नहीं कि मैं कांग्रेस की मुखालफत और दूसरी पार्टी या असदुद्दीन ओवैसी या भाजपा का सपोर्ट कर रहा हूं मैं यह भी कहता हूं मोदी सरकार में समाज को बांटने की जो राजनीति हो रही है वह भी गलत है। गुजरात दंगा भी मुसलमानों को एक बहुत गहरी चोट दे गया।
मैं यह सब लिखने पर मजबूर हुआ इसलिए कि किसी ऐसे शख्स ने जिसकी भारतीय राजनीति में कोई बहुत बड़ी पकड़ नहीं है अगर किसी राज्य में उसने चुनाव लड़के 5 सीटें हासिल की हैं तो उसकी तारीफ करना चाहिए ना कि उसकी आलोचना करनी चाहिए।
मैं चाहता हूं कि कांग्रेस पार्टी और उसके आलाकमान खुलकर के सामने आए और अपने गलत नीतियों, विचारधाराओं और गलतियों के लिए खुल करके बात करें क्योंकि जब पार्टी नेतृत्व परिवर्तित हो चुका है उसकी सोच बदल चुकी है तो आप पार्टी के क्रियाकलापों में भी परिवर्तन आना चाहिए। कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वह सामने आये और बताये कि 1947 से लेकर 2014 तक कांग्रेस पार्टी ने मुसलमानों के लिए क्या-क्या किया है ताकि सबको पता चले कि वह मुसलमानों का वोट क्यूं चाहती है और मुसलमानों को वोट क्यों देना चाहिए?
जयहिंद
सैय्यद एम अली तक़वी
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