क़ौम के खुम्स, जकात,चांदी के पैसे से क़ौम के बच्चों के लिए स्कूल व अस्पताल फ्री क्यों नहीं बनाई जा रहे हैं

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मोहर्रम के शुरू में छोटे इमामबाड़े पर कुछ मौला से मोहब्बत करने वालों ने हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा बनाया जा रहा तबरूक,नज़रे मौला की गुणवत्ता पर आवाज़ उठाई,

जिस पर सोशल मीडिया पर दो तरहॉं की सोच के लोग नज़र आए,
एक वो जो तबरूक को जायज़ नहीं समझते,

दूसरे जिनको ऐसे प्रदर्शन से क़ौम की बेज़्ज़ती लगी,
पहले नंबर वाले ये बताएं,
जब हम हज या उमरा करने जाते है और वहां से खजूर-जनमाज़-जम-जम लाते है,
और लोगों में हज का तबरूक कह कर बटते है क्या आपका ये अरकाम हज के अरकाम में शामिल है,
इस ही तरीके से मजलिस का हिस्सा तबरुक है

नंबर दो वो लोग है जिनको ऐसे काम से क़ौम की बेज़्ज़ती लगी

क्या आप बताएंगे इसमें बेज़्ज़ती नहीं है,कि ये ग़रीबों का हक़ बड़े पैसों वालों के घर में सबसे पहले पहुंच जाता है,

बेज़्ज़ती तो इसमें है कि मिम्बर रसूल से दूसरे मौलाना की गीबत की जाए,

बेज़्ज़ती तो इसमें है की क़ौम के पास ICSC,CBSC स्कूल,अस्पताल नहीं जहां फ्री शिक्षा और फ्री इलाज हो सके,
बेज़्ज़ती तो इसमें है की ग़रीब आदमी अपने परिजनों को दफन कराने में मोटी रकम नहीं दे पा रहा है,
वो चंदा या दूसरों की मदद से अपने परिजनों को दफन कर रहा है,
शिया वक़्फ़ के पास इतनी ज़मीन होने के बाद भी एक फ्री में दफन होने के लिए कब्रिस्तान नहीं है
बेज़्ज़ती तो इसमें है कि हम से खुम्स जकात विभिन्न तरीकों के चंदा देने के बाद भी प्राइवेट बैंक जिसमें शिक्षा हासिल करने के लिए एवं उद्योग लगाने के लिए क़ौम के बच्चों को ब्याज मुक्त लोन मिल सके,
और बड़े शर्म के साथ लिखना पढ़ना है,अगर नियत सही हो और ये पैसा एक जगह जमा हो जाए तो कितने स्कूल यूनिवर्सिटी अस्पताल बैंक क़ौम के लिए खोले जा सकते हैं,

अल्लाह जन्नत नसीब करें उन नवाबीने अवध को जिन्होंने बड़ी-बड़ी मस्जिद इमामबाड़े हमारे इबादत के लिए बना कर छोड़ दिए हैं जिनके कब्रिस्तान में हम कम पैसों में दफन होते हैं लखनऊ में उनके नाम से कोई मोहल्ला कोई गाली नहीं है, आपको इस काम से बेज्जती इस वजह से लग रही है कि आप पैसे वाले घर में पैदा हुए हैं और आपको भूख का प्यास का एहसास नहीं है आपका रोज़ा भी पूरे दिन AC में काटता है और इफ्तार, सेहरी में वो वो चीज़े खाते हैं जिनके नाम गरीब आदमी ने केवल सुनता है,तो यह तबरूक नज़रे मौला इस वजह से रखी गई है कि जो लोग लखनऊ के बाहर से 10 दिन का मोहर्रम करने आते हैं, उनको और उन गरीब लोगों जो एक मोहर्रम से मौला के गम में अपना काम-धंधा बंद कर देते हैं उनको ये तबरूक और नज़रे मौला मिल सके वो दिन भर भूखे ना रहे नवाबी ने अवध में इस तबरूक नज़रे मौला में खास बात रखी गई है,इसमें किसी भी प्रकार के गोश्त लहसुन,प्याज का इस्तेमाल नहीं होता ताकि हमारे सनातन भाई आए तो साथ में बैठकर खा सके,ये उन लोगों के लिए नहीं है जो बड़े-बड़े अमीर लोग हैं जिनके घर में हांडिया और बाक़र ख़ानी सुबह-सुबह पहुंचा दी जाती है,ये गरीबों ज़ायरीन /मुसाफिरों का हक है,इसकी अहमियत ना तो नाजायज कहने वाले जानते हैं और ना ही क़ौम की बेज़्ज़ती बोलने वाले, इसकी अहमियत हमारे सनातनी भाइयों में देखिए तबरूक को इतने एहतराम से लेते हैं उसका ज़र्रा बराबर भी ज़मीन में गिरने नहीं देते,और आंखों से लगाकर खाते हैं,
तो वे लोग जो तबरूक और नज़रे मौला की अहमियत को समझते हैं वो हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा बांटे जा रहे हैं तबरूक के गुणवत्ताओं पर अंकुश लगाने वालों के साथ हैं, सुधार होना बहुत जरूरी है, ताकि खाने वाला कोई बीमार ना हो और ना उत्तर प्रदेश शासन प्रशासन की बेज़्ज़ती ना हो,

फ्रीलांसर
शाबू ज़ैदी
7617032786

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