“तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो”
कैफी आजमी… मुस्कुराहट के पीछे का गम, चमक के पीछे का अंधेरा और महिलाओं के लिए नए सवेरे की तलाश करने अपनी जिंदगी गुजारने वाले शायर. एक ऐसी शख्सियत जिसकी कलम में जमाने के रुख को मोड़ने की ताकत थी. जिसने हिंदी सिनेमा की दुनिया में उर्दू शायरी के चलन को बढ़ाया. कैफी आजमी (Kaifi Azmi) ने देश के अन्नदाताओं और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को भी अपनी शायरी का हिस्सा बनाया.
उर्दू शायर और गीतकार कैफी आजमी का पूरा नाम सय्यद अतहर हुसैन रिजवी था. उनकी पैदाइश 14 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मिजवां में हुआ।
फ़िल्मजगत के मशहूर उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी में नैसर्गिक काव्य प्रतिभा थी और वह छोटी उम्र में ही वे शायरी करने लगे थे।
‘काग़ज़ के फूल’, ‘हकीकत’, ‘हिन्दुस्तान की कसम’, ‘हंसते जख्म’, ‘आखरी खत,शोला और शबनम,’ नोनिहाल,अर्थ और ‘हीर रांझा’ जैसी फ़िल्मों में कई सुपरहिट गाने लिखे हैं।
साहित्य अकादमी पुरस्कार, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (फ़िल्म सात हिन्दुस्तानी), फ़िल्मफेयर पुरस्कार (फ़िल्म गरम हवा), सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड ।
आज उनकी 21वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 10 मई साल 2002 को कैफ़ी आज़मी साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। वह एक बेहतरीन शायर थे और युवा के दिल का हाल बखूबी समझते थे। उनके लिखे एक एक शेर दिल को सीधा छू जाते है। आज भी उन्हें उर्दू लिटरेचर में दिए उनके योगदान के लिए याद किया जाता है।
कैफी आजमी जी… दूरदर्शन के क्रिश्चियन सिरियल बाईबल से भी जुड़े हुए थे और एक फिल्म नसीम मे काम किया था…