सरकार नागरिकों की बेइज्जती कैसे करती है वर्तमान समय में दिखाई दे रहा है। जनता से सबूत मांगने की तैयारी की जा रही है कि सिद्ध करो तुम इस देश के नागरिक हो।
अगर पुत्र से कहा जाये कि साबित करो तुम अपने पिताजी के बेटे हो तो वह क्या करेगा? जो बेटा करेगा वही इस वक्त भारतीय नागरिक कर रहा है। दुनिया के हर देश एवं, राष्ट्रों को अपने गहरे घाव भरने के लिए दर्दनाक प्रक्रियाओं से होकर गुज़रना पड़ा है। हिंसा से सबक़ लेना और बीती को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ना कोई आसान काम नहीं है। यदि हम अपने देश के बारे में सोचें तो भारत ने उलटा रास्ता चुना है। देश के स्थिर लोकतंत्र को बुरा कह के, जिस लोकतंत्र के लिए ख़ून से आज़ादी की इबारत लिखी गई और सत्तर सालों तक सुरक्षित रखा गया, आज भारत के नए नेता पुराने ज़ख्मों को कुरेद रहे हैं जिससे पूरा देश कराह रहा है।
1947 में अनगिनत लोगों की क़ुर्बानी देने के बाद, नए भारत ने एक अखंड राष्ट्र के गठन के लिए धर्मनिरपेक्षता का रास्ता चुना, जिसमें सभी धर्मों के मानने वालों को समान अधिकार देने का एलान किया गया। नयी सुबह हुई, नया सूरज उगा।
मगर अफसोस धर्मनिरपेक्ष और अखंड भारत के इस विचार को पिछले कुछ दिनों से एक पार्टी की ओछी एवं घटिया राजनीति या ये कहूं कि बहुसंख्यकवाद नीति ने अपने पैरों तले रौंद दिया। एक बार फिर दो धर्मों के नज़रिए ने अखंड भारत की नींव को हिलाकर रख दिया है। इससे पूरे भारत में भय का माहौल पैदा हो रहा है और पूरे देश में राष्ट्रव्यापी विरोध शुरू हो गया है जिसमें हर समुदाय के लोग शामिल हैं। यह संघर्ष यहीं ख़त्म नहीं होगा, बल्कि एक लम्बा सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष शुरू हो सकता है, जिसे दूसरे शब्दों में गृह युद्ध कहा जाये तो ग़लत नहीं होगा। इसके अलावा विदेशों में भी विरोध प्रदर्शन हो रहा है। इंग्लैंड एवं ईरान जैसे देशों में प्रदर्शन जारी है।
मुसलमानों को अलग करके धर्म के आधार पर बनाए गए नए नागरिकता के क़ानून के बड़े पैमाने पर विरोध और आलोचना के बावजूद, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस क़ानून को भारत को बचाने वाला बताया है और इसका बचाव किया है। ग़लत चीज़ को बचाने का परिणाम घातक होता है।
हालांकि सरकार ने कहा है कि नया कानून भेदभावपूर्ण नहीं है और इसका मक़सद केवल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले पीड़ित हिंदू शरणार्थियों की मदद करना है, न कि देश की अपनी मुस्लिम आबादी के साथ भेदभाव करना। लेकिन कोई भी इस पर यकीन नहीं कर पा रहा है। और वह इसलिए कि यह क़ानून, समानता और बराबरी के अधिकारों की गारंटी देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के से टकराता है। इसीलिए इसे पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है, लेकिन मोदी सरकार ने न्यायपालिका समेत सरकारी संस्थाओं को इतना कमज़ोर कर दिया है कि वह निष्पक्ष फ़ैसले लेने में सक्षम नहीं हैं।
हद तो यह हो गई कि संयुक्त राष्ट्र संघ और अमरीका ने इस क़ानून को मूल से रूप से भेदभावपूर्ण क़रार देते हुए इसमें सुधार की मांग की है।
राष्ट्र संघ ने इस पर चिंता जताते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।
नए नागरिकता क़ानून सीएए का असली ख़तरा उस वक़्त सामने आएगा, जब असम की तरह राष्ट्रीय नागरिकों का रजिस्टर एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा। इसीलिए कहा जा रहा है कि सीएए और एनआरसी एक ही सक्के के दो रुख़ हैं।
मोदी सरकार नए डिटेंशन कैम्पों का निर्माण कर रही है। सरकार ने सभी राज्यों को बड़े शहरों में कम से कम एक डिटेंशन कैम्प बनाने का आदेश दिया है। भारतीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोदी सरकार ने राज्य सरकारों के लिए 11-पेज का “2019 मॉडल डिटेंशन मैनुअल” भी जारी किया है। क्या है इसका उद्देश्य? क्या देश इससे तरक्की करेगा? क्या शिक्षा, रोजगार, भूख, प्यास, किसान, कृषि, मंहगाई जैसी जरूरतें नागरिकों को नहीं है। एक तो अर्थव्यवस्था चौपट, नोटबंदी का असर, रोजगार ठप्प! अब इसके बाद वह लाइन में खड़े होकर साबित करेगा कि I am Indian. मूर्खता की हद हो गई।
लेकिन कहा गया है–
“जब अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान”।
सिर्फ़ यूं ही इस नए नागरिकता क़ानून और एनआरसी की तुलना नाज़ी जर्मनी के (Nuremberg Race Laws on citizenship) के साथ नहीं की जा रही है। नाज़ी जर्मनी के इस क़ानून ने यहूदियों के व्यवस्थित उत्पीड़न के लिए हिटलर को क़ानूनी संरक्षण प्रदान किया था। जर्मनी की नागरिकता केवल जर्मन मूल के लोगों को दी गई थी। द अहेनन पास (पूर्वज कार्ड) “आर्यन नस्ल” के लोगों को लिए जारी किया गया था।
आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा भारत विरोध और प्रदर्शन की आग में जल रहा है। पंजाब, बंगाल और केरल समेत कई राज्यों ने नए नागरिकता के क़ानून और एनआरसी को लागू करने से इनकार कर दिया है। विश्वविद्यालय एवं कालेज बंद कर दिए गए। लोग सर्दी में सड़क पर उतर आए हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि सभी धर्मों के लोग एक साथ हैं। कहना पड़ेगा।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई।
आपस में सब भाई भाई।।
हालात बहुत खराब हैं। देश ऐसे समय में आग में जल रहा है जब हमारी अर्थव्यवस्था बिखर गई थी। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि ऐसी हालत में जब गंभीर आर्थिक संकट से बचने के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों की ज़रूरत थी, भारत ने ख़ुद को अपने ही ख़िलाफ़ युद्ध में झोंक दिया है। जनता बनाम सरकार का परिणाम बहुत भयावह होता है।
जय हिन्द।
सैय्यद एम अली तक़वी
ब्यूरो चीफ- दि रिवोल्यूशन न्यूज
निदेशक- यूरिट एजुकेशन इंस्टीट्यूट, लखनऊ
syedtaqvi12@gmail.com