लेखक एस.एन.लाल
मै यहां राजनीति को किनारे रखकर बात कर रहा हूॅं। यह लिखने से पहले बहुत नेट खंगाला…, हमको ‘रामचन्द्र जी’ बुरा कहने वाले कोई भी उर्दू पे्रमी नहीं मिला, इसके पीछे ख़ास कारण यह कि आज़ादी से पहले संस्कृत के अतिरिक्त रामायण, गीता, वेद व पुराण सब अपको उर्दू – फारसी में मिल जायेंगे। एस.एन.लाल
जिसको पुरखों ने पढ़ा और अच्छी तरह से जाना समझा, इसी समय में जब भारत में उर्दू ने जन्म लिया तो भारतीय सभ्यता और संस्कृति अपने अन्दर पूरी तरह उतार लिया। यही
वजह है कि मन्दिरों में बजने वाले फिल्मी भजन जितने सुन्दर शकील बदायुनी, साहिर लुधवानवी या जावेद अख़्तर ने लिखे। उतने अच्छे भजन नहीं मिलते। महाभारत में जितने खुबसूरत डॉयलाग राही मासूम रज़ा ने लिख दिये..न पहले लिखे गये, न उसके बाद।
एस.एन.लाल
कोई भी उर्दू वाला राम मन्दिर बनने का विरोधी नहीं, सभी राम मन्दिर बनने के पक्षधर है, लेकिन मस्जिद टूटने का विरोध ज़रुर प्रकट करते हैं और क्यों न करें…क्योंकि राम जी भी उसी निराकार भगवान (न जन्म लेने वाला (अजन्मा) परमेश्वर न टूटने वाले विचारों से पृथ्वी को धारन करता हैं। ऋग्वेद 1/67/3), (परमेश्वर की प्रतिमा, परिमान उसके तुल्य अवधिका साधन प्रतिकृति आकृति नही हैं अर्थात परमेश्वर निराकार हैं। यजुर्वेद 32/3 ) के भेजे हुए संदेशवाहक है…! यानि संदेशवाहक की पूजा के लिए निराकार भगवान का मन्दिर तोड़ दिया जाये…तो…! एस.एन.लाल
यहां आपसी मतभेद या जो भी भेद हो उसका मुख्य कारण भाषा की अज्ञानता की कमी के कारण हम सही से दूसरे धर्मो का ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते, और राजनेता ज्ञान प्राप्त करने भी नहीं देना चाहते…क्योंकि फिर उनकी बात कौन सुनेगा और क्यों..! एस.एन.लाल
असल में किसी भी दूसरे धर्म व उसकी पूजनीय विभूति को ऑंख बन्द करके बुरा कहने वाले अज्ञानी व अधर्मी है, वह न रामभक्त है, न कृष्णभक्त…उनको नाम अन्धभक्त बहुत सही दिया गया…! जिसको ये बुरा लगेगा…वह कौन सा भक्त होगा…! एस.एन.लाल