बच्चों से स्कूल चलता है यह तो सुना था मगर इस लाकडाउन में यह भी पता चल गया कि देश जनता चला रही है सरकार नहीं और एक नई बात कि स्कूल की आर्थिक स्थिति भी अब अभिभावकों के सहारे। सरकार ने तो जनता के हाथ में कटोरा पकड़ा ही दिया है अब स्कूल भी बड़े मियां के रास्ते पर चल रहा है। यानी बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुबहान अल्लाह।
इस लाकडाउन में जहां लोगों को खाने के लाले पड़ गए। तमाम संस्थाओं और समाजसेवी लोगों ने जनता तक राशन पहुंचाने का काम किया वहीं दूसरी तरफ स्कूलों ने इस संकट की घड़ी में भी इंसानियत का परिचय नहीं दिया बल्कि अपना व्यवसाय जारी रखा और अभिभावकों को फीस जमा करने की नोटिस भेजते रहे। उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि दो महीने से घरों में बंद मध्यमवर्गीय परिवार कहां से फीस जमा करेगा। ऊपर से नोटिस में झूठ भी बोला गया कि फीस में बढ़ोतरी नहीं की गई।
अपने दायित्वों को अभिभावकों पर डालकर शिक्षक अपना रास्ता आसान कर रहे हैं। आनलाइन शिक्षा के नाम पर बेवकूफ बनाया जा रहा है। जल्दी जल्दी कोर्स पूरा किया जा रहा है। वह बच्चे जिनको यही शिक्षक पैरेंट्स टीचर मीटिंग में मोबाइल ना इस्तेमाल करने की नसीहत देते थे आज वही बच्चे चार से छह घंटे मोबाइल से अपनी आंखों को सेंक रहे हैं। आनलाइन शिक्षा का मतलब ही अलग है इसका कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत है। मगर इन स्कूलों ने आनलाइन शिक्षा का मतलब ही बदल दिया। ज़ूम एप्प के सहारे बेवकूफ बनाया जा रहा है। वायस रिकार्डिंग, फोटोग्राफ, वीडियो भेज कर खानापूर्ति की जा रही है।
सरकार ने तीन महीने की फीस न लेने की बात कही थी। शहर के जिलाधिकारी महोदय द्वारा नोटिस जारी किया गया था मगर अब सबने कान और आंख बंद कर लिया है । सवाल वही है कि जनता जाये तो कहां जाये? सबसे बड़ा कमाल यह है कि व्हाट्सऐप ग्रुप पर टेस्ट भी लिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि नक़ल नहीं करिये तथा अभिभावक सहायता ना करें। इस तरह की परीक्षा या तो 1991 में मुलायम सरकार द्वारा सहपुस्तकीय परीक्षा देखी थी या अब 2020 में स्कूलों द्वारा ट्वेंटी ट्वेंटी परीक्षा।
कुछ लोगों का कहना है कि स्कूल के टीचर की सैलरी कहां से दी जाएगी। साल भर फीस और किताब पर कमीशन जमा करने के बाद अगर स्कूल के पास इतना बजट नहीं है कि शिक्षकों की सैलरी दे सकें तो मध्यमवर्गीय परिवार कहां से इतना पैसा लायेगा। छह साल में बास ने सबकी सोच बदल दी। इंसानियत का कत्ल कर दिया। जालिमों का बोलबाला है। ज़ुल्म ज़ुल्म है चाहे डंडे से हो, बंदूक से हो, ज़बान से हो या पैसे के लेन-देन के जरिए हो।
मैं एक बार फिर सभी स्कूल मैनेजमेंट और जिलाधिकारी महोदय से निवेदन करूंगा कि अप्रैल मई और जून की फीस माफ की जाये। क्यूंकि जिसके पास नहीं है वह जमा तो नहीं करेगा। चाहे जो कर लो।
जयहिंद
सैय्यद एम अली तक़वी
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