अकेले में बैठ कर के सोचिए मार्च 2020 का समय जब कोरोना नाम की एक भयानक बीमारी का पदार्पण हुआ उस वक्त हमारे देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए लोगों ने 21 दिन में उसको मिटाने का वादा किया और फिर उसके बाद 1 दिन का भारत बंद जिसे देश की जनता ने सपोर्ट किया। देश की जनता ने फिर उसके बाद लॉकडाउन जैसी भयावह स्थिति का सामना किया। और यही नहीं देश की जागरूक और अकलमंद जनता ने विश्वास करते हुए दिए भी जलाए, ताली भी बजाई, थाली भी पीटी लेकिन यह सिलसिला बढ़ते बढ़ते तकरीबन 11 महीने तक चलता रहा अब उसके बाद जब साल 2021 मार्च का महीना आया तो फिर एक बार वही स्थिति उससे ज्यादा विकट रूप में सामने आई तो सवाल यह है क्या यह स्थिति विकट रूप में हमारे सामने आ रही है यह स्थिति विकट रूप में हमारे सामने पेश की जा रही है।
आप चिंतन करें कि कोरोनावायरस इस वक्त जिस तेजी के साथ देश के कुछ प्रदेशों में फैल रहा है वही कोरोना शायद बंगाल के बॉर्डर को पार नहीं कर पा रहा है क्योंकि वहां पर शायद उसे बड़े-बड़े लोगों की मौजूदगी का डर है। वहां पर देश के संवैधानिक पदों पर बैठे लोग मौजूद हैं इसलिए कोरोनावायरस की हिम्मत नहीं है कि वहां पर चला जाए।
वायरस वह होता है कि अगर हवा के जरिए फैलने वाला है तो वह किसी भी जानदार को नहीं बख़्शता है लेकिन आप चिंतन करें कि आज कोरोना वायरस किस पर अटैक कर रहा है। अभी पिछले 5 दिनों के भीतर लखनऊ में जितने ऐसी मौत हुई है जो जानने वालों की थी वह कोई भी कोरोना से नहीं मरा वह इलाज ना मिलने के कारण इस दुनिया से चले गए और कम उम्र में चले गए यह कितने अफसोस की बात है।
जिस बात का दावा किया जा रहा था कि देश बहुत तेज रफ्तार के साथ प्रगति और तरक्की कर रहा है वह तरक्की और प्रगति कहां है आज आलम यह है कि बैकुंठधाम और गुलाला घाट जो लखनऊ में है वहां पर अंत्येष्टि के लिए सही इंतजाम नहीं है अंत्येष्टि के लिए वेटिंग चल रही है लकड़ियों की कमी है बाहर से लकड़ियां आ रही है वह भी कालाबाजारी हो रही है अस्पतालों में बेड नहीं है ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को भी कवर कर लिया है कोविड-19 अस्पतालों में परिवर्तित कर दिया है इसका दूसरा मतलब समझिए कि जो जनता है उसको आम बीमारियों का इलाज भी अब प्राइवेट अस्पतालों में नहीं मिलेगा और जनता डर के मारे खांसी जुकाम बुखार इन सब चीजों के इलाज के लिए कहां जाए हार्ट की प्रॉब्लम, ब्रेन की प्रॉब्लम, शुगर, दर्द इन सब के इलाज के लिए जनता कहां जाए किसी मर्ज का इलाज नहीं हो रहा है सिर्फ कोविड-19 पर न जाने कौन सा इलाज चल रहा है इसीलिए सब मौतें हो रही हैं।
आज एक वरिष्ठ मंत्री ने इस बात को खुले तौर पर कहा कि चिकित्सा व्यवस्था जर्जर स्थिति में है। उन्होंने यह क्यों कहा उनका दर्द क्यों निकल कर बाहर आ गया क्योंकि उन्होंने स्वयं किसी के लिए फोन करके चिकित्सा व्यवस्था मुहैया कराने को कहा लेकिन उनके कहने के बावजूद भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं हो पाई और उनका देहांत हो गया।
स्कूल कोचिंग बंद कर दी गई अब सरकार कह रही है कि हम जीविका का ध्यान रखेंगे। क्या उत्तर प्रदेश में दो-चार कोचिंग है लाखों की तादाद में कोचिंग चल रही है यह प्राइवेट काम करने वाले शिक्षक जो कोचिंग के जरिए अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं उनकी जीविका का कौन जिम्मेदार है मंदिर और मस्जिद में पांच व्यक्तियों की लिमिट तय कर दी गई लेकिन सवाल यह है कि पंचायत चुनाव के लिए लखनऊ के ऑडिटोरियम में प्रशिक्षण शिविर चलाया गया जिसमें हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे उनको लिए क्या कोविड-19 प्रोटोकॉल नहीं था।
कुछ समझ में नहीं आ रहा कि लोगों की आप लोगों क्या हो गया दिमाग में अखिल की जगह गोबर आ गया इसीलिए सही स्थिति का आकलन नहीं किया जा रहा है जबकि हकीकत यह है कि सामान्य चिकित्सा प्रणाली को अगर पहले की तरह रवां दवां कर दिया जाए तो मृत्यु दर में अपने आप कमी आ जाएगी।
बरबाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था।
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा।।
ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे और अपनी सुरक्षा में रखे।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी