अर्नब गोस्वामी और उनके जैसे पत्रकारों की पत्रकारिता पर लगे रोक।

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    9देश का दुर्भाग्य है कि शहीदों के परिवारों पर अभद्र टिप्पणी की जाये और देश तोड़ने और लूटने वालों की जय जयकार की जाये और सरकार खामोश रहे।
    अफसोस इस बात का नहीं कि अर्नब जैसे पत्रकार देश की एकता और अखंडता को खंडित कर रहे हैं। अफसोस इस बात का है कि सरकार इसको संज्ञान में क्यों नहीं ले रही है? हालांकि अर्नब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा रही है लेकिन वह देश की जनता की तरफ से है जबकि प्रधान सेवक को इस पर बोलना चाहिए। जब एक सौ तीस करोड़ जनता सरकार की एक आवाज पर थाली बजा सकती है, दिया जला सकती है तो क्या एक आवाज पर यह देश तोड़ने वाली हरकतें नहीं बंद हो सकती हैं?
    इस वीडियो को देखने के बाद मन बहुत दुखी हुआ, शायद राजनीति और पत्रकारिता का इतना घिनौना चेहरा पहले कभी नहीं देखा गया।
    मैं भी एक पत्रकार हूं लेकिन क्या पत्रकार और खासकर किसी बड़े चैनल के पत्रकार को इतनी अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करना चाहिये? सबसे पुरानी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी की अध्यक्ष का नाम लेकर ऐसी बेहूदा टिप्पणी क्या उचित है? बड़े चैनल के सम्पादक होने का यह मतलब नहीं है कि आप मेज पीट के और ताली बजा के किसी के सम्मान के साथ खेलें! क्या इस अर्नब गोस्वामी को देश का ठेका दिया गया है कि माहौल बिगाड़ने की कोशिश करें।
    क्या सत्ताधारी दल का आशीर्वाद मिला है या सत्ताधारी पार्टी ने दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया है और चापलूसी में लगे हैं या फिर चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिये सम्मानित एवं शहीद परिवार के लोगों को गाली दे रहे हैं?
    कुछ भी हो सकता है मगर अर्नब को पत्रकार और इस कृत्य को पत्रकारिता नहीं कहा जा सकता है।

    अब समय आ गया है कि पत्रकारिता को बचाने के लिए स्वयं ईमानदार पत्रकारों को आगे आना होगा और भ्रष्ट पत्रकारों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। इसमें पत्रकार शामिल हों। बड़े और छोटे का सवाल नहीं है। बड़ा पत्रकार वही है जिसके कलम में ईमानदार और पाक लहू हो बिकी हुई स्याही नहीं।
    जयहिंद।

    सैय्यद एम अली तक़वी
    syedtaqvi12@gmail.com

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