लेखक एस.एन.लाल का अज़ादारी बिददत क्यो का दुसरा लेख:
मैने एक पोस्ट डाली थी ‘‘करबला में आप किधर थे….ये आपके आज के फतवे से पता चलता है…!’’ इस हेडिंग के साथ। काफी कमेन्ट्स आये, लेकिन कुछ हमारी सुन्नी मुस्लिम दोस्तो ने नराज़गी ज़ाहिर की, कुछ ने फेसबुक पर, कुछ ने वाट्सअप और कुछ ने तो पर्सनल हमसे मिलकर। सबका अलग-अलग कहना था…! ‘‘कुछ का ये कहना ये अज़ादारी से क्या..किरदार हुसैन जैसा बनाना चाहिए,’’ ‘‘कुछ का यह कहना था आप किसी को क्यों बुरा कहते है…, अल्लाह पर छोड़ दिजये।’’, कुछ ने कहां अज़ादारी तो करते है…लेकिन नमाज़ वग़ैरा नहीं पढ़ते’’। वैसे सभी ने अपनी जगह सही कहां..! एस.एन.लाल
लेकिन इन सबकी बातों से एक बात सामने आयी कि अधिकतर दोस्त मौलानाओं द्वारा बताया हुआ इस्लाम जानते है बस। और इस्लामी तारीख़ से कोसो दूर है.., मै समझता हूॅ…कि अगर मुसलमान क़ुरआन और हदीस के साथ इस्लामी तारीख़ को भी पढ़ लेगा.., तभी अपने लिए सही फैसला कर पायेगा।
वैसे तो सारा जवाब आज के माहौल के हिसाब से एक लाइन में ख़त्म किये देता हूॅं। एस.एन.लाल
ईरान जो अज़ादारी करता है और अहलैबैत को मानता है, तुर्किश जहां अज़ादारी की जाती है और अशरा मोहर्रम की छुट्टी होती है.., ये दोनो मुल्क आज किसी से नहीं डरते, न अमेरिका से और न इज़्ाराइल से।
यू.ए.ई. जहां अज़ादारी तो दूर की बात, वहां अहलैबैत के चहाने वालों पर ज़ुल्म होते है…यही नहीं रसूल (स.व.अ.) की पैदाइश मनाने पर जेल में डाल दिया जाता है, वह आज अमेरिका और इज़राइल का दुम हिलाता….. बना हुआ है। एस.एन.लाल
ये जवाब काफी है, लेकिन मै और साफ किये देता हूॅं सबूत के साथ। स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्या, सभी जानते होंगे, इस्लाम पर अच्छी पकड़ है क्योंकि वह इस्लाम के स्कालर है। सोशल मीडिया पर उनको सुना होगा…! उन्होंने पहले क़ुरआन की आयतों को लेकर एक किताब लिखी ‘इस्लामी आतंकवाद का इतिहास’, जिसमें इस्लाम को बुरा और मानने वालों को आतंकवादी साबित किया है। जब वह भारत में कामयाब हुए, तो उनको दुनियाबी स्तर पर ऐसी किताब लिखने का आफर आया। तो उन्होंने इस्लाम पढ़ना शुरु किया, तब उनको लगा कि पहले वह ग़ल्त थे…, इस्लाम तो भाई-चारे का धर्म है। लेकिन उन्होंने एक बात कही, सिर्फ क़ुरान काफी नहीं, इस्लामी तारीख़ भी पढ़ेंगे, तभी इस्लाम समझ आयेगा। एस.एन.लाल
लेकिन हम नमाज़ और रोज़ा के आगे बढ़ते ही नहीं…, ये दीन का सुतून ज़रुर है, लेकिन नमाज़ और रोज़ा छूट जाने पर बाक़ी जिन्दगियों की नेकियों की बिना पर परवरदिगार ने माफ करने का वादा भी किया है, लेकिन अगर किसी दूसरे को तक़लीफ पहुंचाई है, किसी से साथ बुरा बर्ताव किया है…, तो खुदा उसे माफ नहीं करेगा…, उसकी सज़ा भुगतना पड़ेगी !एस.एन.लाल
अज़ादारी करने वाले नमाज़ और आमाल भी करते है…, वह मोहर्रम के दौरान इमामबाड़ों में नमाज़ और आमाल करते है, मस्जिदों और सड़कों पर नहीं इसलिए लोगों को नज़र नहीं आता। एस.एन.लाल
जहां तक अहैलेबैत पर सवाल उठाने वालों को बुरा न कहें…, ये कैसे हो सकता है..! जहां हदीस-ए-सक़लैन में रसूल (स.व.अ.) जहां अबूलहब के मॉं-बाप की तारीफ करते है, वहीं अबूलैहब पर लानत भी भेजते है…जोकि क़ुरआन में भी है। रसूल (स.व.अ.) ने इसी हदीस में बता दिया है…, कौन हक़ पर है। क़ुरआन फर्माता है कि अपना झुकाओं ज़ालिम की तरफ न रखों, वरना जहन्नुम में जलोंगे। एस.एन.लाल
बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ की हदीसे…! ‘जिसने फात्मा को दुख पहुंचाया, उसने खुदा को दुख पहुंचाया’, ‘‘हुसैन (अ.स.) मुझसे है और मै हुसैन (अ.स.) से हूॅ, जिसने हसुैन (अ.स.) को तकलीफ दी, उसने मुझे तकलीफ दी।’’ हुसैन (अ.स.) की पैदाइश पर रसूल (स.व.अ.) बहुत रोये थे। जिस साल हज़रत हम्ज़ा शहीद हुए और हज़रत खतीजा का इन्तेक़ाल हुआ…, उस पूरे साल रसूल (स.व.अ.) ने ग़म मनाया, 3 दिन नहीं पूरे 365 दिन। अज़ादारी की मुख़ालिफत करने वाले इस्लामी तारीख़ पढ़े…बस…,!एस.एन.लाल